Saturday, February 27, 2016

फिल्म 26/11 के बहाने कुछ बातें

नाना पाटेेकर अभिनीत यह फिल्म कितनी हकीकत कितना फासना यह हम नहीं जानते लेकिन राम गोपाल वर्मा आज भी बेहतर कथानक की भी भूमिका निभाते हैं...करीब दो घंटे कि यह फिल्म आपका तब हिलाकर रख देती है जब राकेश मारिया कसाब को लेकर जाते हैं आैर उसे उसी की भाषा में उसकी जन्नत दिखाते हैं फिर उसके चेहरे पर उकेरा गया हर भाव एक नर्इ कहानी कहता है कि कैसे किसी को गुमराह करके कुछ भी कराया जा सकता है आैर उसे कोर्इ भी सजा दे दी जाए उसका पैमाना कम पड जाता है
दूसरा पहलू यह है कि अब अपराध करने की प्रवृत्ति बदल रही है अब अपराध चल रहा होता है आैर बडा ही होता जाता है यह भी २६/११ के बाद का ही बदला स्वरूप है.इससे पहले तक पुलिस हर मौके पर अपराध के बाद पहुंचती थी. पहला मौका था की पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह जाए तो किधर जाए करे तो क्या करें क्यों कि अपराध चल रहा था आैर एक एक मिनट बाद विकराल रूप धारण कर रहा था
तीसरा पहलू सीएसटी स्टेशन पर जब एके ४७ गरज रही थी तो नेताआें की लंबी टोपी टाइप में नीली टोपी पूरे जोश के साथ डंडा लेकर अपराध से निपटने दौडती है लेकिन उन्हें तो पता भी नहीं चलता की यह मुंगेर का कटटा नहीं किलिंग मशीन एके ४७ है.यानी की अपनी पुलिस अभी भी विज्ञापन के ३०३ टाइप जोशवर्धक में उलझी है जब कि मामला यहां वियाग्रा से होते हुए मैग्नेट तक पहुंच चुका है
चौथा पहलू यह कि मास किलिंग कैसे की जाए इसका एक बडा प्रशिक्षण चल रहा है. बडे स्तर पर यह संकेत यह भी देता है कि किसी पटाखे टाइप चीज फटने पर आप तत्काल भौकाल में खडे होकर मुआयना न करें बल्कि किसी तरह सरकने का प्रयास करें उपाय करें जैसे कामा हाॅस्पिटल के डाॅक्टर ने किया था.वरना बम फोड खडा करेंगे आैर यह गोली मार देंगे, सो सावधानी बरतें

आैर कुरान की आयतों से ही झकझोर कर रख देने वाले नाना पाटेकर की बात ही बेमिशाल है

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...