Monday, November 11, 2013

चाँद रूठा रहा जाने किस बात पर



चाँद रूठा रहा जाने किस बात पर ;


चांदनी के बिना रात रोती रही /


भीगा तन भीगा मन ,भीगा सारा जहाँ ;


आँखों से ऐसी ,बरसात होती रही /


ऐसे बादल उड़े ,जैसे आँचल कोई ;


जिन्दगी मन में ,जज्बात बोती रही /


शर्म से जिसके लव न खुले थे कभी ;


रात भर उनसे ही ,बात होती रही /


स्याह माहोल में ,जब धरा -नभ मिले ;


दिल से दिल की ,मुलाकात होती रही /


विजय कुमार वर्मा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgL21JsgoL7lFJjRpUvspdey5Vsg8R0Twp6EHe_YkqoXXyKmuhMw_PtVZaCol4goAU2jXRsw-0cHNFeZitiS0bKA520P7DB_kKTARrk5vNma__y-NfXoEY2Wizug24DRcR-USVWm7nXjMVq/s1600/night+scene.jpg

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...