चाँद रूठा रहा जाने किस बात पर
चाँद रूठा रहा जाने किस बात पर ;
चांदनी के बिना रात रोती रही /
भीगा तन भीगा मन ,भीगा सारा जहाँ ;
आँखों से ऐसी ,बरसात होती रही /
ऐसे बादल उड़े ,जैसे आँचल कोई ;
जिन्दगी मन में ,जज्बात बोती रही /
शर्म से जिसके लव न खुले थे कभी ;
रात भर उनसे ही ,बात होती रही /
स्याह माहोल में ,जब धरा -नभ मिले ;
दिल से दिल की ,मुलाकात होती रही /
विजय कुमार वर्मा
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