Friday, May 28, 2010

BEST PICTURE OF THE YEAR

एक बोध कथा- काँच की बरनी और दो कप चाय

जीवन में जब सब कुछ एक साथ और जल्दी - जल्दी करने की इच्छा होती है , सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है , और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं , उस समय ये बोध कथा , " काँच की बरनी और दो कप चाय " हमें याद आती है ।
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...
उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की   बडी़ बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ... उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ... आवाज आई ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये h धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये , फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई   है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ... फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ .. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा .. सर ने टेबल के नीचे से चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित थोडी़ सी जगह में सोख ली गई ...
प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया –
इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....
टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,
छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और
रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..
अब यदि तुमने काँच की बरनी में   सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ... यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय नहीं रहेगा ... मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने   बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ , घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ... टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ...... पहले तय करो कि क्या जरूरी है ... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे .. अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया कि " चाय के दो कप " क्या हैं ? प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच   ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिये ।

Monday, May 10, 2010

रंग डालने की सज़ा शादी !


संथाल समाज
संथाल समाज में महिलाए अपने बीच ही होली खेतली हैं
क्या होली के दिन किसी युवती को रंग लगाने की सज़ा उससे शादी कर भुगतनी पड़ सकती है.
सवाल थोड़ा अटपटा ज़रूर है. लेकिन अगर आपने कभी पश्चिम बंगाल के उत्तरी हिस्से में जलपाईगुड़ी ज़िले के अलीपुरद्वार क़स्बे का यही नियम और परंपरा है.                                                      
जलपाईगुड़ी के अलीपुरद्वार की तुरतुरी पंचायत के संथाल  मोहल्ले में सदियों पुरानी यह अनोखी परंपरा आज भी जस की तस है.
यह अलग बात है कि अब समाज और लोकलाज के डर से लोग यहां भूल कर भी होली के दिन लड़कियों को रंग नहीं लगाते.
लेकिन इस मोहल्ले में कम से कम एक दर्जन ऐसे लोग हैं जो लड़कियों को रंग लगाने की सज़ा उनसे शादी कर भुगत चुके हैं.
शादी नहीं तो जुर्माना
होली के दिन अगर कोई लड़का किसी लड़की को ग़लती से भी रंग लगा दे तो उसे लड़की से शादी करनी पड़ती है. अगर किसी वजह से शादी नहीं हो सकती तो उस लड़के की हैसियत के मुताबिक़ जुर्माना तय किया जाएगा. जुर्माने की न्यूनतम रकम पांच सौ रुपए है
संथाल समाज के पटगो टुडू
लेकिन पंचायत के बुज़ुर्ग कहते हैं कि अगर लड़की को रंग लगाने की भूल किसी ऐसे व्यक्ति से हो जाए जो विवाह के योग्य नहीं है तो वह जुर्माने की रक़म भर कर माफ़ी पा सकता है.
संथाल समाज के पटगो टुडू बताते हैं, ‘‘होली के दिन अगर कोई लड़का किसी लड़की को ग़लती से भी रंग लगा दे तो उसे लड़की से शादी करनी पड़ती है. अगर किसी वजह से शादी नहीं हो सकती तो उस लड़के की हैसियत के मुताबिक़ जुर्माना तय किया जाएगा. जुर्माने की न्यूनतम रकम पांच सौ रुपए है.’’
वैसे, इस वैकल्पिक प्रावधान की ठोस वजह तो कोई नहीं बता पाता.
इसी डर से कोई संथाल युवक किसी युवती के साथ रंग नहीं खेलता.
संथाल समाज में होली रंग से नहीं, बल्कि पानी से खेली जाती है. परंपरा के मुताबिक़ पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.
परंपरा और पवित्रता
संथाल समाज
होली में ये समाज गीत-संगीत का ख़ास आयोजन करता है
रंग खेलने के बाद वन्यजीवों के शिकार की परंपरा है. शिकार में जो वन्यजीव मारा जाता है उसे पका कर सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है.
संथाल मुहल्ले के विजय मुंडा कहते हैं, ‘‘आधुनिकता के इस दौर में भी हमारे मोहल्ले में इस नियम का पालन कड़ाई के साथ होता है. इसका मक़सद इस त्योहार की पवित्रता बरकरार रखना है. होली के दिन इस सामाजिक परंपरा को तोड़ने की हिम्मत कोई नहीं करता.’’
होली खेलने का दिन भी समाज के मुखिया निर्धारित करते हैं. मुखिया मालदो हांसदा ने इस बार होली के एक सप्ताह बाद यह त्योहार मनाने की तारीख तय की है. तुरतुरी ग्राम पंचायत के संथाल युवक-युवतियां उसी दिन होली खेलेंगे.
समाज के बड़े-बूढे़ तो होली की इस सदियों पुरानी परंपरा से खुश हैं. लेकिन बदलते समय के साथ युवा पीढ़ी इसमें बदलाव के पक्ष में है. हेमलता मुंडा कहती हैं, ‘‘यह परंपरा सदियों पुरानी है. आधुनिकता के इस दौर में इसमें बदलाव लाया जाना चाहिए. हमें भी खुल कर रंगों से होली खेलने की छूट दी जानी चाहिए.’’
दूसरी ओर, मुखिया मालदो हांसदा कहते हैं, ‘‘समाज में सदियों पुरानी परंपरा को बदलना न तो उचित है और न ही संभव.’’
वे इस परंपरा में किसी तरह की खामी नहीं मानते.

सबसे ख़तरनाक होता है सपनों का मर जाना

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक्‍़त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना


सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
तुम्हारी कलाई पर चलती हुई भी जो
तुम्हारी नज़र में रुकी होती है
सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों परगुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्‍याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन तुम्हारी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्‍मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
तुम्हारे जिस्‍म के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती ।

Thursday, May 6, 2010

भारत: हाल की प्रमुख चरमपंथी घटनाएँ


पुणे धमाका
भारत में हाल के वर्षों में कई चरमपंथी घटनाएँ हुई हैं. आएँ एक नज़र डालते हैं इन घटनाओं पर:
बंगलौर, अप्रैल 17,2010: बंगलौर के चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर हुए दो बम धमाकों में 15 लोग घायल.
पुणे, फ़रवरी 13, 2010: पुणे में जर्मन बेकरी में हुए धमाके में पाँच महिलाओं और कुछ विदेशियों समेत नौ लोग मारे गए और 45 घायल हुए.
मुंबई, नवंबर 26, 2008: मुंबई में तीन जगहों - ताज और ऑबराय होटलों और विकटोरिया टर्मिनस पर हुए चरमपंथी हमले तीन दिन तक चले और इनमें लगभग 170 लोग मारे गए जबकि 200 अन्य घायल हो गए.
असम, अक्तूबर 30, 2008: असम में एक साथ 18 जगहों पर हुए बम धमाकों में 70 से अधिक लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हो गए.
इंफ़ाल, अक्तूबर 21, 2008: मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर पर हुए हमले में 17 लोग मारे गए.
मालेगांव, सितंबर 29, 2008: महाराष्ट्र के मालेगांव में एक वाहन में बम धमाके के कारण पाँच लोग मारे गए.
मोदासा, सितंबर 29, 2008: गुजरात के मोदासा में एक मस्जिद के पास हुए धमाके में एक व्यक्ति मारा गया.
दिल्ली, सितंबर 27, 2008: दिल्ली में महरौली के बाज़ार में फेंके गए एक देसी बम हमले में तीन लोग मारे गए.
दिल्ली, सितंबर 13, 2008: दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर हुए बम धमाकों में कम के कम 26 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए.
अहमदाबाद, जुलाई 26, 2008: दो घंटे के भीतर 20 बम विस्फोट होने से 50 से अधिक लोग मारे गए.
बंग्लौर, जुलाई 25, 2008: एक छोटे बम धमाके में एक व्यक्ति मारा गया.
जयपुर, मई 13, 2008: शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 68 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए.
रामपुर, जनवरी 1, 2008: उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के कैंप पर हुए हमले में आठ लोग मारे गए.
लखनऊ, फ़ैज़ाबाद, वाराणसी, नवंबर 23, 2007: उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में हुए धमाकों में 13 मारे गए कई घायल हुए.
अजमेर, अक्तूबर 11, 2007: राजस्थान के अजमेर शरीफ़ में हुए धमाके में दो मारे गए और अनेक घायल हुए.
हैदराबाद, अगस्त 25, 2007: आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुए धमाके में 35 मारे गए और कई घायल हुए.
हैदराबाद, मई 18, 2007: हैदराबाद में मक्का मस्जिद धमाके में 13 लोग मारे गए.
समझौता एक्सप्रेस, फ़रवरी 19, 2007: भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा में धमाके, 66 यात्री मारे गए.
मालेगांव, सितंबर 8, 2006: महाराष्ट्र के मालेगांव में तीन धमाकों में 32 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए.
मुंबई, जुलाई 11, 2006: मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 170 लोग मारे गए और 200 घायल हो गए.

भावनाएं कितनी महत्वपूर्ण...?


मायूसी, परेशानी
मोहब्बत में कुछ ऐसा भी होता है, भावनाएं कितने रंग दिखाती हैं...
जज़्बात या भावना के सैलाब में बह कर उठाए गए कुछ क़दम बड़े भारी हो सकते हैं और शायद उनको क़ाबू में रखने को ही समझदारी का नाम दिया जाता है. इन सबके बावजूद भावनाएं हमारे लिए काफ़ी महत्वपूर्ण हैं.
हमारी लेखन शैली, हमारे स्वर, हमारे शब्द और हमारी बातों में हमारी भावनाएं निहित होती हैं और वह उसमें जान डालती हैं. भावनाएं भाव वाचक संज्ञा हैं. विभिन्न प्रकार के रंगों से सुसज्जित होने के बावजूद इनका कोई रंग नहीं होता.
आज हम अंग्रेज़ी में भावनाओं की अभिव्यक्ति वाले शब्द लेकर आए हैं, जैसे, ख़ुशी, ग़म, आशा, निराशा वग़ैरह. अंग्रेज़ी में भावना के लिए इमोशन्स (Emotions) का प्रयोग करते हैं.
विभिन्न शब्दकोशों में इमोशन की अभिव्यक्ति के लिए ये शब्द दिए गए हैं. आइए देखते हैं हमारी भावनाएं क्या कहती हैं और इनका प्रयोग कैसे करते हैं?
Acceptance (ऐक्सेप्टैंस) यानि स्वीकृति या स्वीकरण या रज़ामंदी
प्रयोग: The idea rapidly gained acceptance in the political circle.
Affection (अफ़ेक्शन) अनुराग, स्नेह
प्रयोग: Teachers have deep affection for their students.
Anger (ऐंगर) क्रोध, रोष, ग़ुस्सा
प्रयोग: He has a lot of anger towards his father who treated him badly as a child. या I cannot hold my anger.
The whole India went into a kind of euphoria after Indian based movie Slumdog Millionaire won over half a dozen Oscar this year.
Annoyance (अनोयांस) संतापन, नाराज़गी, छेड़ख़ानी
प्रयोग: I can understand your annoyance. She is fit for childcare.
Anxiety (ऐंज़ाइटी) चिंता, फ़िक्र
प्रयोग: Her son is a source of considerable anxiety.
Apathy (अपैथी) उदासीनता, भावशून्यता
प्रयोग: I attended such a class where apathy existed among both the students and teachers.
Awe (एव) श्रृद्धायुक्त विस्मय, रौब, भय
प्रयोग: The sight of the saint filled the people with awe. या वर्ब के तौर पर I was awed but not frightened at coming near the lion in the zoo.
Boredom (बोरडम) ऊब, ऊबाऊपन, नीरस्ता, उचाट
प्रयोग: They came out in stormy weather out of sheer boredom.
Compassion (कमपैशन) करूणा, तरस, रहम
प्रयोग: The company does not show any compassion towards their employees at this hour of great depression.
Contempt (कौंटेम्पट) तिरस्कार, हिक़ारत, अपमान, घृणा
प्रयोग: She makes no attempt to conceal her contempt for beggars.
Curiosity (क्यूरियोसिटी) कुतूहल, जिज्ञासा, जानने की दिलचस्पी
प्रयोग: I am burning with curiosity—who will win the series in New Zealand.
Annoyance (अनोयांस) संतापन, नाराज़गी, छेड़ख़ानी
प्रयोग: I can understand your annoyance. She is fit for childcare.
मायूसी में
डेप्रेशन इतनी तीव्र भावना है जिसके कारण दुनिया भर में काफ़ी लोग मर जाते हैं
Depression (डिप्रेशन) दबाव-तनाव, उदासी, अवनति
प्रयोग: It is hard to get out from depression very quickly. It’s advisable to take professional help if you’re suffering from depression.
Desire (डिज़ायर) ख़्वाहिश, अभिलाशा, इच्छा, कामना
प्रयोग: He does not have much desire for wealth. It’s difficult to suppress the desire of the people for a long. It’s an old saying, first deserve then desire.
Disappointment (डिसअप्वांइंटमेंट) निराशा, विफलता, मायूसी
प्रयोग: To my disappointment, he decided to leave me. It was a great disappointment for the people to watch India losing.
Disgust (डिसगस्ट) विरक्ति, घृणा, खीज
प्रयोग: He left the hall in sheer disgust. Doesn’t all these violence on TV disgust you.
Ecstasy (एक्सटैसी) हर्षोन्माद, प्रहर्ष, उल्लास
प्रयोग: She called her husband in ecstasy but was depressed at his behaviour. The film ended when the hero kills her beloved in an ecstasy of jealousy.
Embarrassment (एम्बैरेसमेंट) घबराहट, लज्जा, शर्मिंदगी
प्रयोग: She blushed with embarrassment. I tried not to show up after last night’s embarrassment.
Envy (एनवी) ईर्ष्या, डाह, हसद, जलन
प्रयोग: I envy his ability to perform before the live audience.
Euphoria (यूफ़ोरिया) सुखाभास
प्रयोग: The whole India went into a kind of euphoria after Indian based movie Slumdog Millionaire won over half a dozen Oscar this year.
Ecstasy (एक्सटैसी) का प्रयोग: She called her husband in ecstasy but was depressed at his behaviour. The film ended when the hero kills her beloved in an ecstasy of jealousy.
Fear (फ़ियर) ख़ौफ़, डर, भय
प्रयोग: He that is down needs fear no fall. He rushed to the police station out of extreme fear.
Frustration (फ़्रस्ट्रेशन) आशाभंग, कुण्ठा, खीज, मायूसी
प्रयोग: He left the hall in frustration and started raising anti movement slogans.
Gratitude (ग्रैटिच्यूड़) कृतज्ञता, एहसानमंदी
प्रयोग: The organisers of the programme expressed their gratitude to the chief guest.
Grief (ग्रीफ़) ग़म, दुख, शोक
प्रयोग: In a fit of anger and grief he fell down. Media should not intrude on people’s private grief.
Guilt (गिल्ट) दोष बोध, अपराध बोध, जुर्म का एहसास
प्रयोग: There was no sense of guilt in the community on the barbaric murder of the priest. The protagonist of the novel is a guilt-ridden young man.
Happiness (हैप्पीनेस) ख़ुशी, सुख-शांति, प्रसन्नता
प्रयोग: It is hard to find peace and happiness in one’s life these days. AR Rehman expressed his happiness over wining two Oscar awards in 2009.
Hatred (हेटरेड) नफ़रत, बैर, घृणा
प्रयोग: The murder was carried out of extreme hatred. Don’t let hatred rule your mind.
Hope (होप) आशा, उम्मीद, भरोसा
प्रयोग: His performance at the exams destroyed our hopes. The situation is now beyond hope.
डर
दुनिया भर में ख़ौफ़ की ख़ास फ़िल्में बनाई जाती हैं और इन्हें हौरर फ़िल्म का नाम दिया जाता है
Horror(हौरर) ख़ौफ़, संत्रास, दहल
प्रयोग: She was filled with horror when she did not find her baby in the room.
Hostility (होस्टिलिटी) दुश्मनी, शत्रुता, बैर
प्रयोग: The rival groups showed open hostility towards each other. The hostility between the two communities is growing after the incident.
Hysteria (हिस्टीरिया) हिस्टीरिया, वातोन्माद, जज़्बात का दौरा
प्रयोग: A woman, close to hysteria, jumped from the running train.
Interest (इंटेरेस्ट) दिलचस्पी, रुचि, रस
प्रयोग: I have lost all interest in gambling. Don’t lose your interest in life.
Jealousy (जेलसी) डाह, हसद, जलन, ईर्ष्या
प्रयोग: She left the party in a fit of jealousy as she found her boy friend dancing with another girl. He was eaten up with jealousy when he heard his friend has been given promotion.
Loathing (लोथिंग), नफ़रत, घृणा, नापसंदगी
प्रयोग: Both the teams went into the ground with deep loathing in their eyes.
Love (लव) प्रेम, प्यार मोहब्बत
प्रयोग: Love is the most beautiful thing in the world. There is an old saying—love me, love my dog. I have to chose between love and hate.
Pity (पिटी) रहम करुणा, तरस, दया
प्रयोग: She feels no pity for the roadside professional beggars. She kept gazing in pity at her son.
Pride (प्राइड) अभिमान, अहंकार, घमंड, गर्व
प्रयोग: Pride is one of the seven deadly sins. He felt great pride when his son was selected in the national hockey team.
ईर्षा
envy और jealousy में ज़रा फ़र्क़ है, यही बढ़ कर नफ़रत यानी hatred और loathing में बदल जाते हैं
Rage (रेज) ग़ुस्सा, रोष, क्रोधोन्माद, भाववेश
प्रयोग: Her sudden towering rage was hard to understand. I have never seen him in such a rage before.
Regret (रिग्रेट) पश्चाताप, पचतावा, खेद
प्रयोग: Is there anything in your past life that you regret. I really regret leaving the music band. Remorse (रिमोर्स) का भी इसी अर्थ में प्रयोग किया जाता है.
Sadness (सैडनेस) उदासी, विषाद
प्रयोग: I can see the tinge of sadness on your face.
Shame (शेम) शरम, हया, लज्जा
प्रयोग: He says that he feels no shame for what he has done. The children hang their heads in shame.
Suffering (सफरिंग) पीड़ा, कष्ट, दर्द, दुखभोग
प्रयोग: There’s no doubt that the war will bring widespread devastation and human suffering.
Surprise (सरप्राइज़) हैरत, अचरज, आश्चर्य, अचंभा, ताज्जुब
प्रयोग: Your letter was a pleasant surprise. It is a nasty surprise to find that your pocket has been picked.
Wonder (वॉन्डर) हैरत, अचरज, आश्चर्य, अचंभा, ताज्जुब
प्रयोग: There is no wonder in going to the movie. He shook his head in wonder. She cannot conceal her wonder over the gift she received on her birthday.
Worry (वरी) चिंता, परेशानी
प्रयोग: There’s noting to worry about. Worry makes you sick.
चलते चलते बस यही कह सकता हूं Don’t worry, be happy

ठेके पर नौकरी का मतलब ही बंधुआ मजदूरी है

देवाशीष प्रसून का यह लेख कल के जनसत्ता में प्रकाशित हुआ था. विकास और सामाजिक उन्नति के बेशर्म और झूठे दावों के बीच जमीन पर वास्तविक हालत क्या है, इसे प्रसून ने दिखाने की कोशिश की है.

अगर भारत सरकार या देश के किसी भी राज्य सरकार से पूछा जाये कि क्या अब भी हमारे देश में मजदूरों को बंधुआ बनाया जा रहा है, तो शायद एक-टूक जबाव मिले - नहीं, बिल्कुल नहीं। सरकारे अपने श्रम-मंत्रालयों के वार्षिक रपटों के जरिए हमेशा ऐसा ही कहती हैं। सन 1975 से देश में बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन का कानून लागू है। इस कानून के लागू होने के बाद से सरकारों ने अपने सतत प्रयासों के जरिए बंधुआ मजदूरी की व्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंका है, सरकारी सूत्रों से बस इस तरह के दावे ही किए जाते हैं। हालाँकि, हकीकत इसके बरअक्स कुछ और ही है।
गौर से देखें तो आज ठेके पर नौकरी का मतलब ही बंधुआ मजदूरी है। कारपोरेट जगत में भी एक नियत कालावधि के लिए कांट्रेक्ट आधारित नौकरी में अपने नियोक्ता के बंधुआ बनते हुये कई पढ़े-लिखे अतिदक्ष प्रोफेसनल्स देखने को मिल जायेंगे। क्योंकि एक तो उनके पास विकल्पों का आभाव है और दूसरा नौकरी छोड़ने पर एक भाड़ी-भड़कम रकम के भुगतान की बाध्यता। लेकिन श्रम के असंगठित क्षेत्रों में बंधुआ मजदूरी व्यवस्था का होता नंगा नाच दिल दहला देने वाला है।
बीते दिनों, बीस राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के कई शहरों में हुये एक सर्वेक्षण आधारित अध्ययन ने देश में बंधुआ मजदूरी के मामले में सरकारी दावों की पोल खोल रख दी है। असंगठित क्षेत्रों के कामगारों के लिये बनायी गई राष्ट्रीय अभियान समिति के अगुवाई में मजदूरों के लिए काम कर रहे कई मजदूर संगठनों व गैर-सरकारी संगठनों के द्वारा किये गये इस राष्ट्रव्यापी अध्ययन से पता चलता है कि देश में बंधुआ मजदूरी अब तक बरकरार है। भले ही इसका स्वरूप आज के उद्योगों की नयी जरूरतों के हिसाब से बदला है, लेकिन असंगठित क्षेत्रों में हो रहा ज्यादातर श्रम, किसी न किसी रूप में, बंधुआ मजदूरी का ही एक रूप है। बार-बार यह तथ्य सामने आया है कि आज देश के ज्यादातर इलाकों में बंधुआ मजदूरी की परंपरा के फिर से जड़ पकड़ने के पीछे पलायन और विस्थापन का अभिशाप निर्णायक भूमिका निभा रहा है।
किसी मजदूर को अपना गाँव-घर छोड़ कर दूसरी जगह मेहनत करने इसलिये जाना पड़ता है, क्योंकि उसके अपने इलाके में आजीविका के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होते हैं। कहीं सूखा, कहीं बाढ़ और तो किसी के पास खेती के लिए अनुपयुक्त या नाकाफी जमीन, ऐसे में, वे लोग, जो बस खेतिहर मजदूर हैं, अपने इलाकों में खेती के बदतर स्थिति के कारण एक तो मजूरी बहुत कम पाते हैं और दूसरे समाज में विद्यमान सामंती मूल्यों के अवशेष भी उन्हें बार-बार कुचलते रहते हैं। बेहतरी की उम्मीद में ही वे पलायन करने को मजबूर होते हैं। बंधुआ मजदूरी का नया स्वरूप जो सामने आया है, उसमें मजदूरों का सबसे बड़ा हिस्सा पलायन किये हुये मजदूरों का है।
खेती, ईंट-भट्टा, निर्माण-उद्योग और खदानों जैसे कई व्यवसायों में अपना खून-पसीना एक करने वाले मजदूरों को बडे ही सुनियोजित तरीके से बंधुआ बनाया जाता हैं। मजदूरों को नियुक्त करवाने वाले दलाल शुरुआत में ही थोड़े से रूपये बतौर पेशगी देकर लोगों को कानूनन अपना कर्जदार बना देते हैं। रूपयों के जाल में फँसकर मजदूर अपने नियोक्ता या इन दलालों का बंधुआ बन कर रह जाता है।
अधिकतर मामलों में, ये दलाल संबंधित उद्योगों के नजर में मजदूरों के ठेकेदार होते हैं। इन ठेकेदारों से प्रबंधन अपनी जरूरत के मुताबिक मजदूरों की आपूर्ति करने को कहता है और मजदूरों के श्रम का भुगतान भी आगे चलकर इन्हीं ठेकेदारों के द्वारा ही किया जाता है। बाद में ये ठेकेदार या दलाल, आप इन्हें जो भी संज्ञा दें, मजदूरों के श्रम के मूल्यों के भुगतान में तरह तरह की धांधलियाँ करते हैं। नियोक्ता और श्रमिक के बीच में दलालों की इतनी महत्वपूर्ण उपस्थिति मजदूरों के शोषण को और गंभीर बना देती है। दलाल मजदूरों का हक मारने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं करते है, उन्हें न्यूनतम दिहाड़ी देना तो दूर की बात है। मजदूरों का मारा गया हक ही इन दलालों के लिए मुनाफा है। ऐसी स्थिति में मजदूरों के प्रति किसी भी प्रकार की जिम्मेवारी, जैसे कि रहने और आराम करने के जगह की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाएं, बीमा, खाने के लिए भोजन और पीने के लिए पानी को सुलभ बनाना और दुर्घटनाओं के स्थिति में उपचार आदि से अमूमन नियोक्ता अपने आप को विमुख कर लेता है। नियोक्ता इन सब के लिए ठेकेदारों को जिम्मेवार बताता है तो ठेकेदार नियोक्ता को और ऐसे में मजदूर बेचारे बडे बदतर स्थिति में यों ही काम करने को विवश रहते हैं।
सबसे पहले, महानगरों में काम करने वाली घरेलू नौकरानियों का उदाहरण लें।  गरीबी और भूख के साथ-साथ विकास परियोजनाओं के चलते विस्थापित हो रहे छत्तीसगढ़ और झाड़खंड के आदिवासी रोजी-रोटी के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं। ऐसे में आदिवासी लड़कियों को श्रम-दलाल महानगरों में ले आते हैं। उन्हें प्रशिक्षित करके दूसरों के घरों में घरेलू काम करने के लिए भेजा जाता है। इन घरों में ऐसी लड़कियों की स्थिति बंधुआ मजदूरों से इतर नहीं होती। अठारह से बीस घंटे रोज मेहनत के बाद भी नियोक्ता का व्यवहार इनके प्रति अमूमन अमानुष ही रहता है और इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इन महिला मजदूरों का यौन शोषण भी होता होगा। इतने प्रतिकूल परिस्थिति में भी इनके बंधुआ बने रहने का मुख्य कारण आजीविका के लिए विकल्पहीन होने के साथ-साथ नियोक्ता के चाहरदीवारी के बाहर की दुनिया से अनभिज्ञता भी है। मजबूरन अत्याचार सहते रहने के बाद भी घरेलू नौकरानियाँ अपने नियोक्ता के घर में कैद रह कर चुपचाप खटते रहने के लिए बाध्य रहती हैं, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है।
श्रमिकों पर होने वाला शोषण यहाँ रुकता नहीं है। ईंट-भट्टों में काम करने वाले मजदूरों में महिलाओं के साथ-साथ पुरूष और बच्चे भी काम करते हैं। इन्हें भी काम दिलाने वाले दलाल गाँवों-जंगलों से कुछ रूपयों के बदौलत बहला फुसला कर काम करवाने के लिए लाते हैं। ईंट भट्टे का काम एक मौसमी काम है। पूरे मौसम इन श्रमिकों के साथ बंधुआ के तरह ही व्यवहार किया जाता है और इन्हें न्यूनतम दिहाड़ी देने का चलन नहीं है। और तो और, अध्ययन के अनुसार महिलाओं के प्रति यौन-हिंसा ईंट भट्टों में होने वाली आम घटना है। ईंट-भट्टों में काम करने वाले मजदूरों की खस्ताहाल स्थिति पूरे देश में एक सी है।
अति तो तब है, तब मजदूरों पर यह होता अन्याय एक तरफ सरकारों को सूझता नहीं, दूसरी ओर, खुलेआम सरकार अपने कुछ योजनाओं के जरिए बंधुआ मजदूरी को प्रश्रय भी देती हैं। बतौर उदाहरण लें तो बंधुआ मजदूरी का एक स्वरूप तमिलनाडु में सरकार के प्रोत्साहन पर चल रहा है। बंधुआ मजदूरी का यह भयंकर कुचक्र सुमंगली थित्ताम नाम की योजना के तहत चलाया जाता है। इस योजना को मंगल्या थित्ताम, कैंप कूली योजना या सुबमंगलया थित्ताम के नामों से भी जाना जाता है। इसके तहत 17 साल या कम उम्र की किशोरियों के साथ यह करार किया जाता है कि वह अगले तीन साल के लिए किसी कताई मिल में काम करेगी और करार की अवधि खत्म होने पर उन्हें एकमुश्त तीस हजार रूपये दिये जायेंगे, जिस राशि को वह अपनी शादी में खर्च कर सकती हैं। तमिलनाडु के 913 कपास मिलों में 37000 किशोरियों का इस योजना के तहत बंधुआ होने का अंदाजा लगाया गया है। इनके बंधुआ होने का कारण्ा यह है कि करार के अवधि के दौरान अगर कोई लड़की उसके नियोक्ता कपास मिल के साथ काम न करना चाहे और मुक्त होना चाहे तो उसके द्वारा की गयी अब तक की पूरी कमाई को मिल प्रबंधन हड़प कर लेता है। साथ ही, कैंपों में रहने को विवश की गयी इन लड़कियों के साथ बड़ा ही अमानवीय व्यवहार होता है। इन्हें बाहरी दुनिया से बिल्कुल अलग रखा जाता है, किसी से मिलने-जुलने की इजाजत नहीं होती है। एक दिन में 17-18 घंटों का कठोर परिश्रम करवाया जाता है। हफ्ते में बस एक बार चंद घंटे के लिए बाजार से जरूरी समान खरीदने के लिए छूट मिलती है। इनके लिए न तो कोई बोनस है, न ही किसी तरह की बीमा योजना और न ही किसी तरह की स्वास्थ्य सुविधा। दरिंदगी की हद तो तब है, जब एकांत में इन अल्पव्यस्कों को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जाता है। एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक में आयी एक खबर के मुताबिक शांति नाम की गरीब लड़की को ढ़ाई साल मिल में काम के बाद भी बदले में एक कौड़ी भी नहीं मिली। उलटे, मिल के मशीनों ने उसे अपाहिज बना दिया और प्रबंधन का यह बहाना था कि दुर्घटना के बाद शांति के इलाज में उसकी पूरी कमाई खर्च हो गई।
बंधुआ मजदूरी की चक्कर में फँसने वाले अधिकतम लोग या तो आदिवासी होते हैं या दलित। आदिवासियों का बंधुआ बनने का कारण उनके पारंपरिक आजीविका के उन्हें महरूम करना है। तमिलनाडु की एक जनजाति है इरुला। ये लोग पारंपरिक रूप से सपेरे रहे हैं, लेकिन साँप पकड़ने पर कानूनन प्रतिबंध लगने के बाद से कर्ज के बोझ तले दबे इस जनजाति के लोगों को बंधुआ की तरह काम करने के लिए अभिसप्त होना पड़ा है। चावल मिलों, ईंट-भट्टों और खदानों में काम करने वाली इस जनजाति को हर तरह के अत्याचारों को चुपचाप सहना पड़ता है। तंग आकर जब रेड हिल्स के चावल मिलों में बंधुआ मजदूरी करने वाले लगभग दस हजार लोगों ने अपना विरोध दर्ज किया तो उन्हें मुक्त कराने के बजाए एक सक्षम सरकारी अधिकारी ने उन्हें नियोक्ता से कह कर कर्ज की मात्रा कम करवाने के आश्वासन के साथ वापस काम पर जाने को कहा। सरकारी मशीनरी की ऐसी भूमिका मिल मालिकों और अधिकारियों की साँठ-गाँठ का प्रमाण है।
कुल मिला कर देखे तो बंधुआ मजदूरी के पूरे मामले में एक बहुत बड़ा कारण आजीविका के लिए अन्य विकल्पों और अवसरों का उपलब्ध नहीं होना है। साथ ही, अब तक जो हालात दिखे हैं, उनके आधार पर सरकारी लालफीताशाही के मंशा पर भी कोई भरोसा नहीं किया जा सकता है। बंधुआ मजदूरी का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण स्थायी नौकरी के बदले दलालों के मध्यस्था में मजदूरों के श्रम का शोषण करने की रणनीति अंतर्निहित है। ऐसे में संसद और विधानसभा में बैठ कर उन्मूलन के कानून बनाने के अलावा सरकार को इसके पनपने और फलने-फूलने के कारणों पर भी चोट करना पड़ेगा।

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...