आर्इएएस से लेकर दसवीं तक के परिणामों की घोषणा हर छात्र आैर छात्राआें को उसके पढार्इ का पैगाम लेकर आ रही है. हर जगह उल्लास दिख रहा है मीडिया में भी नुमार्इश जारी है.बडा अच्छा लग रहा है देखकर फलां टाॅपर है आैर माला पहने एक अखबार से दूसरे अखबार के कार्यालय फोटो खींचाने के लिए घूम रहा है लेकिन बडा अचंभा होता है कि कोटा से खबर आती है की फलां लडकी ९२ प्रतिशत अंक लार्इ थी लेकिन फिर भी ९८ प्रतिशत अंक नहीं लाने के कारण फंदे से झूलग गर्इ
मां-बाप या फिर सामाजिक प्राणियों द्वारा डाली गर्इ यह मालाएं नंबर लाने की खुशी कम बल्कि उनके मां बाप के शौर्य का भौडा प्रदर्शन है.इसी की बेदी पर चढकर आगे इन्हीं छात्रों में से कुछ छात्र आत्महत्या कर लेते हैं.छोटे-छोटे बच्चे हाथों में मिठार्इ का डब्बा लिए अखबार के दफतरों में मिठार्इ खिला रहे हैं मां बाप अपनी अपेक्षाआें को बढाए ही जा रहे हैं.यह मालाएं खुशी के बोध से ज्यादा अपेक्षाआें का नया फंदा बनकर उभरने जा रही हैं जो हर समय टीस देंगी की हम ही हैं चाहे कुछ भी हो.अच्छी बात है जब सब नैर्सिगक हो लेकर सब का सब बनावटी है
गले में लटक रही मालाएं मां बाप की अपेक्षाआें का नया फंदा है आैर मीडिया में लिए नया धंधा जो कि पिछले कुछ वर्षों में कोचिंग संस्थानों के उगने के साथ आया है; यह विज्ञापन तो वसूल करता है लेकिन बचपन छीन कर. मानव संसाधन मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने नंबर खत्म करने के लिए ग्रेड प्रणाली लागू तो की लेकिन अभी तक वह लागू सही तरीके से नहीं हो पार्इ है
नंबर का यह खेल हर साल मासूमों की आत्महत्या का नंबर बढा रहा है.मीडिया का चेहरा दिखाने का यह धंधा बहुत सारे मासूमों के गले का फंदा बन रहा है. मीडिया हीरो बनाता है लेकिन अगर हीरो नसरूदीन शाह जैसा नैर्सिक हो तो अच्छा रहता है वरना तो माॅडलिंग वाले हीरो की तरह हालत होती है कि कुछ समय बात साबुन का विज्ञापन मिलाना भी बंद हो जाता है.
हम इस बात से भी इत्तेफाक रखते हैं कि इस बात के दूसरे तर्क आैर पहलू भी हैं लेकिन मौत की माला के इस पहलू से कोर्इ इंकार करे शायद मुझे नहीं लगता.अपील की अपने बच्चे को खूब पढाए आगे बढाए साहस दें लेकिन शाैर्य प्रदर्शन करने के लिए अखबारों आैर टीवी के दफतरों का चक्कर न लगाएं.इस चमकते गलियारें की कर्इ स्याह रास्ते आैर रातें है आैर इन बच्चों के पास उजाला भविष्य
इस बीच बाहर टहल रहा था तो एक छोटा बालक माला पहने नजर आया.पीछे देखा तो ५६ इंच से ज्यादा सीना चौडाकर पिता खडे थे मजरा समझते देर न लगी बालक ने महज १२ साल ८ माह की उम्र में १२वीं पास कर ली.वैसे तो यह बच्चा अकेले में ३डी मोगली फिल्म भी नहीं देख पाए इस नन्हे मुन्हें राही ने फुटबाल क्रिकेट आैर अन्य किसी खेल में भी हाथ नहीं आजमाए पता नहीं ये आगे बढने की दौड कितने आंइस्टीन खोज पाएगी.मुझे तो लगता है दिखावा ज्यादा दम कम हर जगह यही नुमाया हो रहा है.चलो अब पूर्वांचल से लेकर केरल अम्मा ममता के रिजल्ट भी कल नजर दौडा लेना.
...बाकी जो है सो हाइए है
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