Monday, December 20, 2010

राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या आगे-आगे देखिए होता है क्या/ मीर तक़ी 'मीर'

राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या
आगे-आगे देखिए होता है क्या

सब्ज़ होती ही नहीं ये सरज़मीं
तुख़्मेख़्वाहिश दिल में तू बोता है क्या

क़ाफ़ले में सुबहा के इक शोर है
यानी ग़ाफ़िल हम चले सोता है क्या

ग़ैरत-ए-युसुफ़ है ये वक़्त-ए-अज़ीज़
"मीर" इस को रायगाँ खोता है क्या

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