Monday, July 19, 2010

सोनिया गाँधी को आप कितना जानते हैं ? (भाग-3)

जब भारतीय प्रधानमंत्री का बेटा लन्दन में एक लड़की से प्रेम करने में लगा हो, तो भला रूसी खुफ़िया एजेंसी “केजीबी” भला चुप कैसे रह सकती थी, जबकि भारत-सोवियत रिश्ते बहुत मधुर हों, और सोनिया उस स्टीफ़ानो की पुत्री हों जो कि सोवियत भक्त बन चुका हो। इसलिये सोनिया का राजीव से विवाह भारत-सोवियत सम्बन्धों और केजीबी के हित में ही था। राजीव से शादी के बाद माइनो परिवार के सोवियत संघ से सम्बन्ध और भी मजबूत हुए और कई सौदों में उन्हें दलाली की रकम अदा की गई । डॉ.येवेग्निया अल्बाट्स (पीएच.डी. हार्वर्ड) एक ख्यात रूसी लेखिका और पत्रकार हैं, वे बोरिस येल्तसिन द्वारा सन 1991 में गठित एक आयोग की सदस्या थीं, ने अपनी पुस्तक “द स्टेट विदिन अ स्टेट : द केजीबी इन सोवियत यूनियन” में कई दस्तावेजों का उल्लेख किया है, और इन दस्तावेजों को भारत सरकार जब चाहे एक आवेदन देकर देख सकती है। रूसी सरकार ने सन 1992 में डॉ. अल्बाट्स के इन रहस्योद्घाटनों को स्वीकार किया, जो कि “हिन्दू” में 1992 में प्रकाशित हो चुका है । उस प्रवक्ता ने यह भी कहा कि “सोवियत आदर्शों और सिद्धांतों को बढावा देने के लिये” इस प्रकार का पैसा माइनो और कांग्रेस प्रत्याशियों को चुनावों के दौरान दिया जाता रहा है । 1991 में रूस के विघटन के पश्चात जब रूस आर्थिक भंवर में फ़ँस गया तब सोनिया गाँधी का पैसे का यह स्रोत सूख गया और सोनिया ने रूस से मुँह मोड़ना शुरु कर दिया। मनमोहन सिंह के सत्ता में आते ही रूस के वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन (जो कि घुटे हुए केजीबी जासूस रह चुके हैं) ने तत्काल दिल्ली में राजदूत के तौर पर अपना एक खास आदमी नियुक्त किया जो सोनिया के इतिहास और उनके परिवार के रूसी सम्बन्धों के बारे में सब कुछ जानता था। अब फ़िलहाल जो सरकार है वह सोनिया ही चला रही हैं यह बात जब भारत में ही सब जानते हैं तो विदेशी जासूस कोई मूर्ख तो नहीं हैं, इसलिये उस राजदूत के जरिये भारत-रूस सम्बन्ध अब एक नये दौर में प्रवेश कर चुके हैं। हम भारतवासी रूस से प्रगाढ़ मैत्री चाहते हैं, रूस ने जब-तब हमारी मदद भी की है, लेकिन क्या सिर्फ़ इसीलिये हमें उन लोगों को स्वीकार कर लेना चाहिये जो रूसी खुफ़िया एजेंसी से जुड़े रहे हों? अमेरिका में भी किसी अधिकारी को इसराइल के लिये जासूसी करते हुए बर्दाश्त नहीं किया जायेगा, भले ही अमेरिका के इसराइल से कितने ही मधुर सम्बन्ध हों। सम्बन्ध अपनी जगह हैं और राष्ट्रहित अलग बात है। दिसम्बर 2001 में मैने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके सभी दस्तावेज प्रस्तुत कर, केजीबी और सोनिया के सम्बन्धों की सीबीआई द्वारा जाँच की माँग की थी, जिसे वाजपेयी सरकार द्वारा ठुकरा दिया गया। इससे पहले तत्कालीन राज्य मंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया ने 3 मार्च 2001 को इस केस की सीबीआई जाँच के आदेश दे दिये थे, लेकिन कांग्रेसियों द्वारा इस मुद्दे पर संसद में हल्ला-गुल्ला करने और कार्रवाई ठप करने के कारण वाजपेयी ने वसुन्धरा का वह आदेश खारिज कर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट ने मई 2002 में सीबीआई को रूसी सम्बन्धों के बारे में जाँच करने के आदेश दिये। सीबीआई ने दो वर्ष तक “जाँच” (?) करने के बाद “बिना एफ़आईआर दर्ज किये” कोर्ट को यह बताया कि सोनिया और रूसियों में कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन सीबीआई को FIR दर्ज करने से किसने रोका, वाजपेयी सरकार ने, क्यों? यह आज तक रहस्य ही है। इस केस की अगली सुनवाई होने वाली है, लेकिन अब सोनिया “निर्देशक” की भूमिका में आ चुकी हैं और सीबीआई से किसी स्वतन्त्र कार्य की उम्मीद करना बेकार है।

1 comment:

  1. हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -


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