'इतने मरे'
यह थी सबसे आम,
सबसे ख़ास ख़बर
छापी भी जाती थी सबसे चाव से
जितना खू़न सोखता था
उतना ही भारी होता था अख़बार
अब सम्पादक
चूंकि था प्रकाण्ड बुद्धिजीवी
लिहाज़ा अपरिहार्य था
ज़ाहिर करे वह भी अपनी राय...
मृत्यु की महानता की उस साठ प्वाइंट काली
चीख़ के बाहर था जीवन
वेगवान नदी सा हहराता
काटता तटबंध
तटबंध जो अगर चट्टान था
तब भी रेत ही था
गर समझ सको तो, महोदय पत्रकार.’
-वीरेन डंगवाल जी
यह थी सबसे आम,
सबसे ख़ास ख़बर
छापी भी जाती थी सबसे चाव से
जितना खू़न सोखता था
उतना ही भारी होता था अख़बार
अब सम्पादक
चूंकि था प्रकाण्ड बुद्धिजीवी
लिहाज़ा अपरिहार्य था
ज़ाहिर करे वह भी अपनी राय...
मृत्यु की महानता की उस साठ प्वाइंट काली
चीख़ के बाहर था जीवन
वेगवान नदी सा हहराता
काटता तटबंध
तटबंध जो अगर चट्टान था
तब भी रेत ही था
गर समझ सको तो, महोदय पत्रकार.’
-वीरेन डंगवाल जी
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