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कुछ साल पहले मैं दिल्ली में देश में अपने जमाने के सुपर कॉप केपीएस गिल से मिला था । लंबी बातचीत हुई । गिल की कई बातें मुझे आज भी याद है । दो टूक मानते थे-अपराध खत्म नहीं हो सकता,कम किया जा सकता है । पुलिस महकमे में संगठित अपराध को तोड़ने वाले अधिकारी और यूनिट खास होते हैं । संख्या बल से आप बड़े गिरोह का शायद ही कुछ बिगाड़ सकें । मुंबई के जाने - माने इनकाउंटर स्पेशलिस्ट दया नायक और प्रदीप शर्मा से भी मिला हूं । रोजमर्रे के अपराध से कोई मतलब नहीं,लेकिन टारगेटेड गिरोह के प्रति सदैव चौकन्ना । दिल्ली की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच को जाकर देखें । स्पेशल सेल का हेडक्वार्टर आपको कोई लेबोरेटरी दिखेगा,जहां देश भर से दिल्ली कूच करने वाले अपराधियों की कुंडली सदैव खंगाली जाती रही है । परिणाम,आप मुंबई में दाऊद,छोटा राजन,गवली,भरत नेपाली का नाम जरुर सुन लेंगे, लेकिनदिल्ली पुलिस कोई नामचीन गैंगस्टर पैदा नहीं होने देती ।
बहुत दूर नहीं जाकर लखनऊ चलें । गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला के खात्मे को लेकर 1995 के आसपास यूपी एसटीएफ का गठन किया गया । कमान संभालने वाले अपने बिहार के ही पूत अरुण कुमार थे । आपरेशन श्रीप्रकाश श्ाुक्ला कामयाब रहा,जिसने तत्कालीन मुख्य मंत्री कल्याण सिंह की नींद भी हराम रखी थी । आज भी यूपी एसटीएफ का तेवर बरकरार है । गया के डा. पंकज गुप्ता-शुभ्रा गुप्ता अपहरण कांड के पटाक्षेप में जलवा अभी-अभी दिखा है । संयोग से,आज भी यूपी एसटीएफ की कमान पटना के ही पूत सुजीत पांडेय के पास है ।
अब बात करते हैं बिहार की STF मतलब Self Tired Police की । हमें अपनी एसटीएफ को सेल्फ टायर्ड पुलिस कहते अच्छा नहीं लग रहा है । कई मेरे इस पोस्ट से खुन्नस भी खा लेंगे,लेकिन बगैर हकीकत बयां किए आप जिम्मेवारियों का अहसास भी नहीं करा सकते । बिहार की एसटीएफ भी बहुत दम-खम से बनी थी । हद पार जाने के बाद गठन लालू प्रसाद ने ही किया था । तब कमान संभालने को बिहार के ही पूत और आंध्र प्रदेश काडर के सख्त आईपीएस विनय कुमार सिंह को लाया गया था । बहुत कम समय में उन्होंने बिहार की एसटीएफ को खतरनाक अपराधियों और नक्सलियों के बीच खौफजदा कर दिया था । लेकिन जब सरकार को लगा कि कार्रवाई में आजादी से राजनीतिक नुकसान हो रहा है,तब एसटीएफ का मनोबल तोड़ा जाने लगा ।
हालात ऐसे पैदा किये गये कि विनय कुमार सिंह बिहार छोड़ने को विवश कर दिए गए । जदयू-भाजपा के शासनकाल में भी इसे संभालने की कोशिश नहीं हुई । सरकार ने मान लिया कि सुशासन आ गया है,भविष्य की चुनौतियों का ख्याल ही नहीं रखा । मतलब केपीएस गिल की बात पुख्ता होती है । आप जब टारगेट खत्म कर देंगे,तो परेशान होंगे । बगैर टारगेट पुलिस महकमा नहीं चल सकता । बड़े टारगेट को खत्म करने के बाद नेक्स्ट पर आना ही होता है । एसटीएफ बगैर टारगेट किसी माने-मतलब का नहीं रह जाता,जैसा कि बिहार की वर्तमान स्थिति है ।
सच कड़वा होता,लेकिन सच होता है । आप जानकर आश्चर्य करेंगे कि एसटीएफ में प्रत्येक स्तर पर वेतन बिहार पुलिस के वेतन से करीब तीस फीसदी अधिक होता है । मतलब यह निकलता है कि एसटीएफ का आईजी सूबे के डीजीपी के बराबर वेतन प्राप्त करता है । लेकिन आज एसटीएफ की न कोई तरीके से मानीटरिंग है और न ही जवानों-अधिकारियों की ट्रेनिंग । ट्रांसफर-पोस्टिंग की पालिसी भी भगवान भरोसे है । पहले एसटीएफ में चुनिंदा अधिकारी भेजे जाते थे,पर आजकल तो कोई भी चला जा रहा । बगैर टास्क के सभी रहते हैं,इसलिए कभी भी स्थानांतरण कर देने में कोई परेशानी नहीं होती । बिहार एसटीएफ अब यह भी दावा नहीं कर सकती कि वह नक्सल आपरेशन में लगी है । नक्सल आपरेशन को अब करीब-करीब सीआरपीएफ-कोबरा बटालियन के भरोसे ही छोड़ रखा गया है ।
बिहार एसटीएफ ने बीच में कुछ समय के लिए तब भी जलवा दिखाया था,जब इसके चीफ अमित कुमार थे । लेकिन इसके बाद तो भट्ठा ही बैठा है । कोई रिजल्ट पूछ दे,तो जवाब नहीं मिलेगा । दिल्ली पुलिस के स्पेशल ब्रांच को जब मैं देखने गया था,तो महसूस किया था कि बिहार के अपराधियों की जितनी पुख्ता और सहज उपलब्ध जानकारी वहां संजो रखी गई है,बिहार में किसी स्तर पर नहीं दिखती । इधर महीनों और करीब साल भर से अधिक का तो साफ हिसाब है कि बिहार की एसटीएफ किसी नामी गैंगस्टर को नहीं पकड़ सकी ।
आने वाले दिन चुनाव के हैं । क्राइम में वृद्धि देखने को मिल सकती है । वैसे भी इधर के दिनों में अपराधियों के खिलाफ सीधी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों का बिहार में अकाल पड़ता जा रहा है । दो-चार नाम से आगे हम बढ़ ही नहीं पाते । नये आ रहे आईपीएस में कमिटमेंट तो और कम दिख रहा । हां,पेज थ्री में बने रहने को नये-नये अंदाज जरुर अपना रहे होते हैं ।
बिहार को संगठित गिरोहों से बचाना है,तो एसटीएफ को एसटीएफ की तरह जिंदा करना होगा । बिहार को मदद करने वाले कई हैं । यूपी एसटीएफ को खड़ा करने वाले बिहार के पूत व आईपीएस अरुण कुमार अभी केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर बिहार में ही हैं । गया अपहरण कांड के पटाक्षेप के दिन जब मैं यूपी एसटीएफ के मुखिया सुजीत पांडेय से बातचीत कर रहा था,तब भी उनके भीतर बिहार के लिए कुछ करने की छटपटाहट देखी थी । बस,मजबूत पहल की जरुरत है । साथ में,बिहार की मौजूदा एसटीएफ से लगातार हिसाब-किताब लेने का वक्त है । संभलेंगे,तो ठीक है,वरना बिहार तो भगवान भरोसे रहा ही है ।
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