Monday, February 8, 2010

राजनीति की नीति

राजनीति की नीति का, है ना पारावार

जैसे चाहो मोड़ दो अर्थों का संसार



पल पल निष्ठा बदलना, राजनीति का खेल

आज गले जो मिल रहे कल वे ही अनमेल



मनुज बदलते हैं नहीं, बदल रहे हैं अर्थ

कल जिनके गुन गा रहे, अब दिखते वे व्यर्थ



मंत्री पद के लोभ में दल निष्ठा को तोड़

छोड़ छाड़ कर जा रहे ऐसी देखी होड़



संप्रदाय अरु जाति की राजनीति बेकार

कटुता दिन दिन बढ़ रही नफ़रत का संसार



सत्ता के सुख भोग की होड़ लगी चहुँ ओर

लूट मची सब ओर है, जित देखो तित चोर
              कन्हेया लाल शर्मा

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