इब्न-इ-बतूता
इब्न-इ-बतूता
बगल में जूता
पहने तो करता है, चुर्र
उड़ उड़ आवे , दाना चुगेवे
उड़ जावे चिड़िया फुर्र
अगले मोड़ पे , मौत खडी है
अरे मरने की भी क्या जल्दी है
होर्न बज के, आ बगियाँ में
हो दुर्घटना से देर भली है
चल उड़ जा उड़ जा फुर्र
दोनों तरफ से बजती है यह
आइ है ज़िन्दगी क्या ढोलक है
होर्न बज के आ बगियाँ में
अरे थोडा आगे गतिरोधक है
इब्न-इ-बतूता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी
जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...
-
वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसक...
-
जयपुर. पूर्वांचल की तासीर से जो नावाकिफ हैं, उन्हें यह घटना नागवार गुजरेगी लेकिन यहां खून से ही चिराग जलते हैं. जलवा, जलाल का ख्याल तो अब अ...
-
संभलिए,खतरा कम हुआ है,खत्म नहीं हुआ ______________________________ गया के चिकित्सक दंपती अपहर्ताओं के कब्जे से आजाद अपने घर में हैं । ...
No comments:
Post a Comment