माथे में सेंदूर पर छोटी
दो बिंदी चमचम-सी,
पपनी पर आँसू की बूँदें
मोती-सी, शबनम-सी।
चकमक गोटा-जाली,
चली पिया के गांव उमर के
सोलह फूलों वाली।
हैं उसको जब सखियाँ,
मुस्की आ जाती मुख पर,
हँस देती रोती अँखियाँ।
दिल का कोना-कोना,
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
बाहर-बाहर रोना।
ने अपना किया सिंगार,
तू वह जो धूसर में आयी
सुबज रंग की धार।
तब शीतल उजियारी?
किसे देख हँस-हँस कर
फूलेगी सरसों की क्यारी?
खुलकर मंद पवन में?
पड़ जायेगी जान देखकर
किसको चंद्र-किरन में?
प्रतिमा हरियाली की?
कौन रूह होगी इस धरती
फल-फूलों वाली की?
उँगली की पोरों पर,
प्रिय की याद झूलती है
साँसों के हिंडोरों पर।
प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनिया में जीने का।
वाली मीठी पीर,
निज को डुबो सके निज में,
मन हो इतना गंभीर।
के दिन-दिन त्यौहार,
उर का प्रेम फूटकर हो
आँचल में उजली धार।
राम धारी सिंह दिनकर
दो बिंदी चमचम-सी,
पपनी पर आँसू की बूँदें
मोती-सी, शबनम-सी।
-
- लदी हुई कलियों में मादक
- टहनी एक नरम-सी,
- यौवन की विनती-सी भोली,
- गुमसुम खड़ी शरम-सी।
चकमक गोटा-जाली,
चली पिया के गांव उमर के
सोलह फूलों वाली।
-
- पी चुपके आनंद, उदासी
- भरे सजल चितवन में,
- आँसू में भींगी माया
- चुपचाप खड़ी आंगन में।
हैं उसको जब सखियाँ,
मुस्की आ जाती मुख पर,
हँस देती रोती अँखियाँ।
-
- पर, समेट लेती शरमाकर
- बिखरी-सी मुस्कान,
- मिट्टी उकसाने लगती है
- अपराधिनी-समान।
दिल का कोना-कोना,
भीतर-भीतर हँसी देख लो,
बाहर-बाहर रोना।
-
- तू वह, जो झुरमुट पर आयी
- हँसती कनक-कली-सी,
- तू वह, जो फूटी शराब की
- निर्झरिणी पतली-सी।
ने अपना किया सिंगार,
तू वह जो धूसर में आयी
सुबज रंग की धार।
-
- मां की ढीठ दुलार! पिता की
- ओ लजवंती भोली,
- ले जायेगी हिय की मणि को
- अभी पिया की डोली।
तब शीतल उजियारी?
किसे देख हँस-हँस कर
फूलेगी सरसों की क्यारी?
-
- वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे
- पहला फल अर्पण-सा?
- झुकते किसको देख पोखरा
- चमकेगा दर्पण-सा?
खुलकर मंद पवन में?
पड़ जायेगी जान देखकर
किसको चंद्र-किरन में?
-
- महँ-महँ कर मंजरी गले से
- मिल किसको चूमेगी?
- कौन खेत में खड़ी फ़सल
- की देवी-सी झूमेगी?
प्रतिमा हरियाली की?
कौन रूह होगी इस धरती
फल-फूलों वाली की?
-
- हँसकर हृदय पहन लेता जब
- कठिन प्रेम-ज़ंजीर,
- खुलकर तब बजते न सुहागिन,
- पाँवों के मंजीर।
उँगली की पोरों पर,
प्रिय की याद झूलती है
साँसों के हिंडोरों पर।
-
- पलती है दिल का रस पीकर
- सबसे प्यारी पीर,
- बनती है बिगड़ती रहती
- पुतली में तस्वीर।
प्रेम-सुधा पीने का,
सारा स्वाद बदल जाता है
दुनिया में जीने का।
-
- मंगलमय हो पंथ सुहागिन,
- यह मेरा वरदान;
- हरसिंगार की टहनी-से
- फूलें तेरे अरमान।
वाली मीठी पीर,
निज को डुबो सके निज में,
मन हो इतना गंभीर।
-
- छाया करती रहे सदा
- तुझको सुहाग की छाँह,
- सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे
- रहे पिया की बाँह।
के दिन-दिन त्यौहार,
उर का प्रेम फूटकर हो
आँचल में उजली धार।
राम धारी सिंह दिनकर
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