-
- तो शोक वहां नहीं समाएगा।
-
- दरवाजे से लौट जाएगा।
-
- जिसका भाग्य खुलता है।
-
- सबको निहाल नहीं करती,
-
- वह अपने आसुओं से धुलता है।
-
- दौड़ रहे हो।
-
- जो हमें नदी को देखकर मिलता है।
-
- तुम्हें कैसे दिखाई देगा,
-
- अंधियाली में खिलता है?
-
- तुम हमारी कुटिया को
- देखकर जलते हो।
- तुम हमारी कुटिया को
-
- यही संबंध रहा है।
-
- तुम उन्हें मसलते हुए चलते हो।
तुम पानी की बाढ़ में से
-
- सुखों को छान लोगे।
-
- आसन पर क्यों न बैठ जाए,
-
- मान लोगे।
-
- तुम जी रहे हो,
- हम जीने की इच्छा को तोल रहे हैं।
- तुम जी रहे हो,
और हम अंधेरे में
-
- जीवन का अर्थ टटोल रहे हैं।
-
- शोक की संतान हैं।
-
- पंक्तियों में वेदना के
- शिशुओं को जनते हैं।
- पंक्तियों में वेदना के
-
- पत्तों का मर्मर
-
- ये गरीब की आह से बनते हैं।
- - राम धारी सिंह दिनकर
No comments:
Post a Comment