हर दौर की अपनी एक प्रेम कहानी होती है। और हमें वे प्रेम कहानियां हमारी फिल्मों ने दी हैं। अगर मेरे पिता में थोड़े-से 'बरसात की रात' के भारत भूषण बसते हैं तो मेरे भीतर 'कभी हां कभी ना' के शाहरुख की उलझन दिखाई देगी। हमने अपने नायक हमेशा चाहे सिनेमा से न पाए हों लेकिन प्यार का इजहार तो बेशक उन्हीं से सीखा है। हिंदी सिनेमा इस मायने में भी एक अनूठी दुनिया रचता है कि यह हमारी उन तमाम कल्पनाओं को असलियत का रंग देता है, जिन्हें हिंदुस्तान के छोटे कस्बों और बीहड़ शहरों में जवान होते पूरा करना हमारे जैसों के लिए मुमकिन नहीं।
सिनेमा और उसके सिखाए प्रेम के इस फलसफे का असल मतलब पाना है तो इस महादेश के भीतर जाइए, अंदरूनी हिस्सों में। व्यवस्था के बंधनों के उलट जन्म लेती हर प्रेम कहानी पर सिनेमा की छाप है। किसी ने पहली मुलाकात के लिए मुहल्ले के थियेटर का पिछवाड़ा चुना है तो किसी ने एक फिल्मी गीत कागज पर लिख पत्थर में लपेटकर महबूबा की ओर उछाला है। हम सब ऐसे ही बड़े हुए हैं, थोड़े-से बुद्धू, थोड़े-से फिल्मी। हिंदी सिनेमा के 10 बेहतरीन रोमानी दृश्य बयां कर रहे हैं मिहिर पंड्या :
1. प्यासा
सिगरेट का धुआं उड़ाते गुरुदत्त और दूर से उन्हें तकती वहीदा
यह एक साथ हिंदी सिनेमा का सबसे इरॉटिक और सबसे पवित्र प्रेम-दृश्य है। अभी-अभी नायिका गुलाबो (वहीदा रहमान) को एक पुलिसवाले के चंगुल से बचाने के लिए नायक विजय (गुरुदत्त) ने अपनी पत्नी कहकर संबोधित किया है। नायिका जो पेशे से तवायफ है, अपने लिए इस 'पवित्र' संबोधन को सुनकर अचरज में है। न जाने किस अदृश्य बंधन में बंधी नायक पीछे-पीछे आ गई है। नायक छत की रेलिंग के सहारे खड़ा सिगरेट का धुआं उड़ा रहा है और नायिका दूर से खड़ी उसे ताक रही है। कुछ कहना चाहती है शायद, कह नहीं पाती, लेकिन बैकग्राउंड में साहिर का लिखा, एस. डी. द्वारा संगीतबद्ध और गीता दत्त का गाया भजन 'आज सजन मोहे अंग लगा लो, जनम सफल हो जाए' बहुत कुछ कह जाता है। इस 'सभ्य समाज' द्वारा हाशिए पर डाल बार-बार तिरस्कृत की गई दो पहचानें, एक कवि और दूसरी वेश्या, मिलकर हमारे लिए प्रेम का सबसे पवित्र अर्थ गढ़ते हैं।
2. मुगल-ए-आजम
मधुबाला को टकटकी लगाकर निहारते दिलीप
कहते हैं कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में डायरेक्टर से लेकर स्पॉट बॉय तक हर आदमी के पास सुनाने के लिए 'मुगल-ए-आजम' से जुड़ी एक कहानी होती है। के. आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' हिंदुस्तान में बनी पहली मेगा फिल्म थी, जिसने आगे आने वाली पुश्तों के लिए फिल्म निर्माण के पैमाने ही बदल दिए, लेकिन 'मुगल-ए-आजम' कोरा इतिहास नहीं, हिंदुस्तान के लोकमानस में बसी प्रेम-कथा का पुनराख्यान है। एक बांदी का राजकुमार से प्रेम शहंशाह को नागवार है लेकिन वह प्रेम ही क्या, जो बंधनों में बंधकर हो। चारों ओर से बंद सामंती व्यवस्था के गढ़ में प्रेम की खुली उद्घोषणा स्वरूप 'प्यार किया तो डरना क्या' गाती अनारकली को कौन भूल सकता है। यही याद बसी है हम सबके मन में। शहजादा सलीम (दिलीप कुमार) एक पंखुड़ी से हिंदी सिनेमा की अनिन्द्य सुंदरी अनारकली (मधुबाला) के मुखड़े को सहला रहे हैं और बैकग्राउंड में तानसेन की आवाज बनकर खुद उस्ताद बड़े गुलाम अली खां 'प्रेम जोगन बनके' गा रहे हैं। 'मुगल-ए-आजम' सामंती समाज में विरोध स्वरूप तन-कर खड़े 'प्रेम' का अमर दस्तावेज है।
3. दिल चाहता है
एक बार घूंसा, दूसरी बार इकरार
एक ही डायलॉग 'दिल चाहता है' के दो सबसे महत्वपूर्ण अंश रचता है। वह डायलॉग है एक कवितामय-सा प्यार का इजहार। पहली बार कॉलेज की पार्टी में यह फिल्म का सबसे हंसोड़ प्रसंग है तो दूसरी बार आने पर यह आपकी आंखें गीली कर देता है। बेशक आकाश (आमिर खान) को शालिनी (प्रीटि जिंटा) से प्यार है लेकिन बकौल समीर कौन जानता था कि उसे यह प्यार का इजहार किसी दूसरे की शादी में 200 लोगों के सामने करना पड़ेगा! लेकिन क्या करें कि इस भागती जिंदगी में रुककर प्यार जैसे मुलायम अहसास को समझने में अक्सर ऐसी देर हो जाया करती है। 'दिल चाहता है' ट्रेंड-सेटर फिल्म थी। नई पीढ़ी के लिए आज भी नैशनल एंथम सरीखी है और यह 'इजहार-ए-दिल' प्रसंग उसके भीतर जड़ा सच्चा हीरा।
4. मिस्टर ऐंड मिसेज अय्यर
एक हनीमून की कहानी, जो कभी मनाया ही नहीं गया
कल्पनाएं हमेशा हमारे सामने असलियत से ज्यादा रोमानी और दिलकश मंजर रचती हैं। ख्वाब हमेशा जिंदगी से ज्यादा दिलफरेब होते हैं। एक दक्षिण भारतीय गृहणी मीनाक्षी अय्यर (कोंकणा सेन) ने अपने मुस्लिम सहयात्री (राहुल बोस) की दंगाइयों से जान बचाने के लिए उन्हें अपना पति 'मि. अय्यर' घोषित कर दिया है और अब पूरी यात्रा उन्हें इस झूठ को निबाहना है। और इसी कोशिश में 'मि. अय्यर' साथ सफर कर रही लड़कियों को अपने हनिमून की कहानी सुनाते हैं। नीलगिरी के जंगलों में एक पेड़ के ऊपर बना छोटा-सा घर, पूरे चांद वाली रात, यह एक फोटोग्राफर की आंख से देखा गया दृश्य है। और पीछे उस्ताद जाकिर हुसैन का धीमे-धीमे ऊंचा उठता संगीत। नायिका को पता ही नहीं चलता और वह इस नयनाभिराम मंजर में डूबती जाती है। सबसे मुश्किल वक्तों में ही सबसे मुलायम प्रेम कहानियां देखी जाती हैं। 'मि. ऐंड मिसेस अय्यर' ऐसी ही प्रेम कहानी है।
5. स्पर्श
प्रेम की सुगंध-आवाज-स्पर्श का अहसास
सई परांजपे की 'स्पर्श' इस चयन में शायद थोड़ी अजीब लगे, लेकिन उसका होना जरूरी है। फिल्म के नायक अनिरुद्ध (नसीरुद्दीन शाह) जो एक ब्लाइंड स्कूल के प्रिंसिपल हैं, देख नहीं सकते। वह हमारी नायिका कविता (शबाना आजमी) से जानना चाहते हैं कि वह दिखती कैसी हैं? अब कविता उन्हें बोल-बोलकर बता रही हैं, अपनी सुंदरता की वजहें। अपनी आंखों के बारे में, अपनी जुल्फों के बारे में, अपने रंग के बारे में लेकिन इसका याद रह जाने वाला हिस्सा आगे है, जहां अनिरुद्ध बताते हैं कि यह रूप-रंग तो मेरे लिए बेकार है। मेरे लिए तुम इसलिए सुंदर हो क्योंकि तुम्हारे बदन की खुशबू लुभावनी है, निषिगंधा के फूलों की तरह। तुम्हारी आवाज मर्मस्पर्शी है, सितार की झंकार की तरह और तुम्हारा स्पर्श कोमल है, मखमल की तरह। यह प्रसंग हिंदी सिनेमा में 'प्रेम' को एक और आयाम पर ले जाता है।
6. सोचा न था
ईमानदार दुविधाओं से निकलकर इज़हाए-ए-इश्क
आज की पीढ़ी के पसंदीदा 'लव गुरु' इम्तियाज अली की वही अकेली प्रेम-कहानी को अपने सबसे प्रामाणिक और सच्चे फॉर्म में आप उनकी पहली फिल्म 'सोचा न था' में पाते हैं। नायक आधी रात नायिका की बालकनी फांदकर उसके घर में घुस आया है और पूछ रहा है, आखिर क्या है मेरे-तुम्हारे बीच अदिति? दरअसल यह वह सवाल है, जो उस रात वीरेन (अभय देओल) और अदिति (आयशा टाकिया) एक-दूसरे से नहीं, अपने आप से पूछ रहे हैं और जब उस निर्णायक क्षण में उन्हें अपने दिल से वह सही जवाब मिल जाता है तो देखिए कैसे दोनों सातवें आसमान पर हैं! इस इजहार-ए-मोहब्बत के पहले नायिका जितनी मुखर है, बाद में उतनी ही खामोश, बरबस 'मुझे चांद चाहिए' की वर्षा वशिष्ठ याद आती है। इम्तियाज की प्रेम-कहानियों में प्यार को लेकर वही संशय भाव मिलता है, जिसे हम मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास 'कसप' में पाते हैं। उनकी इन दुविधाग्रस्त लेकिन हद दर्जे तक ईमानदार प्रेम-कहानियों ने हमारे समय में 'प्रेम' के असल अर्थ को बचाकर रखा है।
7. दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे
पलट...
'राज, अगर ये तुझे प्यार करती है तो पलट के देखेगी। पलट... पलट...' और बनती है मेरे दौर की सबसे चहेती प्रेम कहानी। उस पूरे दौर को ही 'डीडीएलजे' हो गया था जैसे। हमारी प्रेमिकाओं के कोडनेम 'सिमरन' होने लगे थे और हमारी पीढ़ी ने अपना बिगड़ैल नायक पा लिया था। हम लड़कपन की देहरी पर खड़े थे और अपनी देहभाषा से खुद को अभिव्यक्त करने वाला शाहरुख हमारे लिए प्यार के नए फलसफे गढ़ रहा था। हर दौर की अपनी एक प्रेम-कहानी होती है। परियों वाली प्रेम-कहानी। मेरे समय ने अपनी 'परियों वाली प्रेम कहानी' शाहरुख की इस एक 'पलट' के साथ पाई।
8. दिल से
ढाई मिनट की प्रेम कहानी
हिंदी सिनेमा में आई सबसे छोटी प्रेम-कहानी। नायक (शाहरुख खान) रेडियो पर नायिका (मनीषा कोइराला) से अपनी पहली मुलाकात का किस्सा एक गीतों भरी कहानी में पिरोकर सुना रहा है और नायिका अपने कमरे में बैठी उस किस्से को सुन रही है, समझ रही है कि यह उसके लिए ही है। इस किस्से में सब-कुछ है, अकेली रात है, बरसात है, सुनसान प्लैटफॉर्म है, दौड़ते हुए घोड़े हैं, बिखरते हुए मोती हैं। यही वह दृश्य है, जिसके अंत में रहमान और गुलजार द्वारा रचा सबसे खूबसूरत और हॉन्टिंग गीत 'ए अजनबी' आता है। नायक अभी नायिका का नाम तक नहीं जानता है लेकिन ये कमबख्त इश्क कब नाम पूछकर हुआ है भला।
9. तेरे घर के सामने
कुतुब के भीतर 'दल का भंवर करे पुकार'
दिल्ली की कुतुब मीनार के भीतर नूतन देव आनंद से पूछती हैं कि क्या तुम्हें खामोशी की आवाज सुनाई देती है? और देव आनंद अपने चुहल भरे अंदाज में नूतन से कहते हैं कि हमें तो बस एक ही आवाज सुनाई देती है, 'दिल की आवाज' और हसरत जयपुरी का लिखा एवं एस. डी. बर्मन का रचा गीत आता है 'दिल का भंवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो'। यह आजाद भारत की सपने देखती नई युवा पीढ़ी है, बंधनों और रूढ़ियों से मुक्त। इस प्रसंग में आप एक साथ दो प्रेम कहानियों को बनता पाएंगे। और गौर से देखें तो ये दोनों ही प्रेम-कहानियां सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली हैं। नए-नए आजाद हुए मुल्क की नई बनती राजधानी इस प्रेम का घटनास्थल है और कुतुब से देखने पर इस प्यार का कद थोड़ा और ऊंचा उठ जाता है।
10. शोले
माउथऑर्गन बजाते अमिताभ और लैंप बुझाती जया
क्या शोले' के बिना लोकप्रिय हिंदी सिनेमा से जुड़ा कोई भी चयन पूरा हो सकता है? वीरू और बसंती की मुंहफट और मुखर प्रेम कहानी के बरक्स एक साइलेंट प्रेम कहानी है जय और राधा की, जिसके बैकग्राउंड में जय के माउथऑर्गन का संगीत घुला है। हिंदी सिनेमा की सबसे खामोश प्रेम कहानी। अमिताभ नीचे बरामदे में बैठे माउथऑर्गन बजा रहे हैं और जया ऊपर एक-एक कर लैंप बुझा रही हैं। आज भी शोले का यह आइकॉनिक शॉट हिंदुस्तानी जन की स्मृतियों में जिंदा है।
साभार -मिहिर पांडिया
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