26 नवंबर 2008 को
मुंबई में जो आतंकी हमला हुआ था, उसे 5 साल पूरे हो रहे हैं। इन 5 सालों में उस
हमले को लेकर तमाम किताबें लिखीं गईं, कई डॉक्यूमेंट्रिज बनाईं गईं, जांच
रिपोर्ट्स वगैरह तैयार की गईं, लेकिन वो हमला इतना बडा था कि उससे जुडी तमाम बातों
का अब तक पूरी तरह से खुलासा नहीं हो पाया है। यही वजह है कि हमले के 5 साल बाद भी
उसे लेकर नई बातें सामने आ रहीं हैं, नये खुलासे हो रहे हैं। इसी कडी में 2
अंग्रेजी पत्रकारों की एक किताब सामने आई है- द
सीज।
इस किताब को पढने के बाद कम से कम 10 ऐसे सच सामने आते हैं, जिनका या तो अब
तक खुलासा नहीं हुआ था या जिनपर ज्यादा गौर नहीं किया गया। अद्रीयान लेवी और कैथी स्कॉट क्लार्क नाम के दो
अंग्रेजी पत्रकरों की ओर से लिखी गई ये किताब उन लोगों के बयान पर आधारित है जो 26-11
के हमले के दौरान ताज होटल में फंसे थे। पत्रकारों ने आतंकियों से लोहा लेने वाले
पुलिसकर्मियों और एनएसजी कमांडोज से भी बातचीत की। दोनो पाकिस्तान में उन सभी आतंकियों
के घर भी पहुंचे जो मुंबई हमले में शामिल थे।किताब में अमेरिकी खुफिया अधिकारियों से
मिली जानकारी भी शामिल की गई। इस पूरी कसरत का निचोड ये निकला कि कई ऐसे तथ्य सामने
आये जो अब तक किसी को पता नहीं थे या जिनपर अब तक गौर नहीं किया गया था। किताब का शुरूवाती हिस्सा कुछ बोरियत भरा लग सकता है जिसमें लेखकों ने
ताज में फंसे लोग हमले से पहले दिनभर क्या कर रहे थे इसका ब्यौरा दिया है।
1-आतंकी हमले के महज
घंटेभऱ बाद पुलिस के हाथ एक ऐसा सुनहरा मौका आया जो उसी रात ताज होटल के
ऑपरेशन को खत्म कर सकता था। रात करीब 10 बजकर 50 मिनट होटल के अंदर घुसे चारों
आतंकवादी एक साथ एक ही वक्त में होटल की पांचवीं मंजिल पर रूम नंबर 551 में दाखिल
हुए। ये आतंकवादियों की ओर से की गई एक बडी गलती थी जिसका पुलिस इस्तेमाल कर सकती
थी। डीसीपी नागरे पाटिल ने सीसीटीवी पर जब चारों को एक साथ देखा तो उन्होने तुरंत
ही आधुनिक हथियारों से लैस असॉल्ट फोर्स को अपने पास भेजने का संदेश भेजा, लेकिन
असॉल्ट फोर्स होटल की भूल भुलैया में नागरे पाटिल को खोज ही नहीं पायी। 10 मिनट
बाद चारों आतंकवादी कमरा नंबर 551 से निकल कर 6वीं मंजिल पर चले गये और उन्होने
आगजनी शुरू कर दी। पुलिस आतंकियों को घेरने का एक बहुत बडा मौका चूक गई। करीब रात
3 बजे तक डीसीपी नागरे पाटिल सीसीटीवी में सभी आतंकियों की हरकत देखते रहे, लेकिन
वे कुछ नहीं कर सकते थे। आखिरकर आतंकियों ने उनके सीसीटीवी रूम पर ही हमला बोल
दिया और उन्हें होटल से बाहर निकलना पडा।
2-हमले से महीनों पहले पुलिस को खुफिया जानकारी
मिली थी कि आतंकी मुंबई के 5 सितारा होटलों को निशाना बना सकते हैं। इसके मद्देनजर
इलाके के डीसीपी विश्वास नागरे पाटिल ने ताज होटल की सुरक्षा का जायजा लिया था और
वहां पुलिस की सुरक्षा भी मुहैया कराई थी...लेकिन ताज होटल के प्रबंधन को होटल की
5 सितारा चकाचौंध के बीच वर्दी और बंदूकधारी पुलिसकर्मी खटक रहे थे। इसलिये जैसे
ही डीसीपी नागरे पाटिल छुट्टी पर गये, ताज के प्रबंधन ने उनकी ओर से लगाई गई
सुरक्षा को दरकिनार कर दिया।
होटल पर हमले का
सबसे पहला खुफिया अलर्ट साल 2006 में आया था। उस अलर्ट के मुताबिक एक पाकिस्तानी
जिहादी संगठन मुंबई के कई पांच सितारा होटल पर हमले की योजना बना रहा है जिसमें
ट्राईडेंट-ओबेरॉय और ताज का भी नाम है। उस पहले अलर्ट के बाद उस जैसे 25 अलर्ट और
भी आये जो कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भारतीय एजेंसियों को दिये थे। कुल 26
में से 11 अलर्ट में ये बताया गया था कि आतंकी एक साथ कई ठिकानों पर हमला करने की
तैयारी कर रहे हैं। 6 अलर्ट में ये साफ किया गया था कि आतंकी समंदर के रास्ते हमला
करने पहुंचेंगे। आईबी को 2 ऐसे अलर्ट भी मिले जिनमें तारीखों के साथ जिक्र था कि
आतंकी ताज महल होटल पर हमला कर सकते हैं। ये तारीखें थीं 24 मई 2008 और 11 अगस्त
2008। हालांकि दोनो तारीखों को हमले नहीं हुए।
ताज को लेकर बार बार
आ रहे खुफिया अलर्ट्स ने स्थानीय डीसीपी विश्वास नागरे पाटिल को चिंतित कर दिया।
इन तमाम अलर्ट्स के मद्देनजर उन्होने 12 अगस्त 2008 को ताज के सुरक्षा प्रमुख
सुनील कुडीयाडी के साथ 9 घंटे तक मीटिंग की और बताया कि किस तरह से होटल की
सुरक्षा व्यवस्था कमजोर है। डीसीपी पाटिल ने होटल की सुरक्षा मजबूत करने के लिये
कुल 26 उपाय बताये जिनमें अहम दरवाजों पर हथियारबंद पुलिसकर्मियों की मौजूदगी भी
शामिल थी। होटल ने इन सुरक्षा उपायों को सिरे से खारिज कर दिया, लेकिन 20 सितंबर
2008 को जब पाकिस्तान के इस्लामाबाद में एक 5 सितारा
होटल पर आतंकी हमला हुआ तो ताज के प्रबंधन को डीसीपी पाटिल की बातों की
गंभीरता समझ में आई। अक्टूबर के दूसरे हफ्ते तक पाटिल की ओर से सुझाये गये कुछ
उपायों पर ताज होटल ने अमल किया...लेकिन ये सिर्फ कुछ दिनों तक ही रहा। डीसीपी
पाटिल कुछ दिनों के लिये जैसे ही छुट्टी पर गये सबकुछ जस का तस हो गया।होटल के
उत्तरी दरवाजे पर कोई सुरक्षा नहीं थी। मुख्य दरवाजे पर तैनात पुलिसकर्मियों को भी
होटल ने हटवा दिया ये कहकर कि वे हरदम जंग की तैयारी जैसा माहौल नहीं बर्दाशत कर
सकते। ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी होटल से खाने की मांग करते थे और ताज के प्रबंधन
को ये अखर रहा था।
3-मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर हसन गफूर ने ताज में
मौजूद पुलिसकर्मियों के एक तरह से हाथ बांध दिये थे। उनका आदेश था कि एनएसजी के
पहुंचने तक कुछ नहीं करना है। यहां तक कि जब शुरूवात में पास के नेवी नगर से मरीन
कमांडोज की एक टुकडी पहुंची तो गफूर ने उसे दिशानिर्देश देने के लिये भी डीसीपी
नागरे पाटिल को साथ जाने से रोक दिया।
एनएसजी को दिल्ली से
पहुंचने में वक्त लगने वाला था। इसलिये तब तक आतंकियों को घरेन के लिये मार्कोस यानी
मरीन कमांडोज बुलाये गये। इन मरीन कमांडोज को होटल की भौगौलिक जानकारी और आतंकियों
की हलचल के बारे में बताने वाले किसी गाईड की जरूरत थी। चूंकि डीसीपी पाटिल हमले
के शुरूवाती कुछ मिनटो के बाद ही होटल पहुंच गये थे और आतंकियों से उनका सामना हो
चुका था इसलिये वे मार्कोस के गाईड बनने को तैयार हो गये...तभी उन्हें पुलिस
कमिश्नर हसन गफूर का फोन आया। गफूर ने पाटिल को हिदायत दी- “ तुम ऊपर नहीं जाओगे। मैं दोहरा रहा हूं। तुम ऊपर नहीं
जाओगे। मार्कोस खुद ऊपर जायेंगे। तुम नीचे ही ताज की घेरेबंदी करोगे”।गफूर का मानना था कि उस वक्त हालात जंग जैसे थे और
मुंबई पुलिस अत्याधुनिक हथियारों से लैस आतंकियों से लडने के काबिल नहीं थी। ये
काम एनएसजी ही कर सकती थी।
ज्वाइंट कमिश्नर लॉ
एंड आर्डर भी ताज
चेंबर्स में छुपे मेहमानों को निकालने के लिये ताज की सिक्यूरिटी टीम के साथ अंदर
दाखिल होना चाहते थे, लेकिन कमिश्नर गफूर ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। कुछ देर
बाद आतंकी ताज चेंबर्स की तरफ आये और उन्होने कई लोगों की हत्या कर दी।
4-एनएसजी का मानना है कि जब वो 27 नवंबर की सुबह
मुंबई पहुंची तो पुलिस और खुफिया एजेंसियों की ओर से उसे सही सही नहीं बताया गया
कि शहर में और खासकर ताज में कुल कितने
आतंकवादी हैं। एनएसजी को बताया गया कि आतंकवादियों की संख्या 20 हो सकती है जबकि
रात में ही अजमल कसाब से पूछताछ में ये साफ हो गया था कि सिर्फ 10 आतकंवादी आये
हैं और उनमें से सिर्फ 4 ही ताज होटल में हैं।
आतंकी अजमल कसाब को हमले की पहली रात ही गिरगांव चौपाटी पर हुए एनकाउंटर में
जिंदा पकड लिया गया था। रात में 2 बार उससे लंबी पूछताछ हुई। पहली पूछताछ अस्पताल
में एसीपी तानाजी घाडगे ने की, जिसके बाद उसे क्राईम ब्रांच लाया गया। क्राईम
ब्रांच में ज्वाइंट कमिश्नर राकेश मारिया ने दोबारा उससे पूछताछ की। दोनो पूछताछ
में कसाब ने बता दिया था कि कुल 10 आतंकवादी आये थे, वे कैसे आये थे, किस तरह के
हथियार उनके पास थे और किसे क्या जिम्मेदारी दी गई थी।
हालांकि कसाब ने सबकुछ बता दिया था, लेकिन पूरी जानकारी एनएसजी तक नहीं
पहुंची।
5-वैसे तो हवाई जहाज से
दिल्ली और मुंबई की दूरी महज 2 घंटे की है, लेकिन एनएसजी को मुंबई पहुंचते पहुंचते
पूरी रात बीत गई। जैसे तैसे विमान का इंतजाम करके एनएसजी कमांडोज को मुंबई तो ले
आया गया लेकिन मुंबई हवाई अड्डे से तुरंत उन्हें दक्षिण मुंबई जहां 3 अलग अलग ठिकानों
पर आतंकी कहर बरपा रहे थे, उन्हें लाने का कोई इंतजाम नहीं था।
27 नवंबर की सुबह साढे पांच बजे एनएसजी जवानों का विमान मुंबई पहुंचा...लेकिन
उन्हें तब झटका लगा जब वादे के मुताबिक उन्हें हवाई अड्डे से आतंकी हमले के
ठिकानों तक पहुंचाने के लिये कोई वाहन नहीं आया। वहीं दूसरी ओर साथ आये होम
सेक्रेटरी को रिसीव करने के लिये सफेद एंबेसेडर कारें आ पहुंचीं थीं। विमान से
असलहा उतारने और स्थानीय बसों का इंतजाम करने में कई और कीमती घंटे बर्बाद हुए। इस
दौरान आतंकी ताज के कीचन वाले इलाके तक पहुंचकर कई लोगों की जान ले चुके थे।
6-भले ही 26-11 का हमला आतंकवादियों की टीम वर्क
का नतीजा हो, लेकिन हमले के दौरान एटीएस ने आंतकियों की पाकिस्तान में बैठे उनके
आकाओं से जो बातचीत रिकॉर्ड की उससे एक दिलचस्प हकीकत सामने आती है। ताज में मौजूद
चारों आतंकवादी न केवल आपस में झगड रहे थे बल्कि पाकिस्तान से आ रहे निर्देशों पर
अमल भी नहीं कर रहे थे।
ताज में मौजूद उमर नाम का आतंकी गुस्से में बंधक बनाये गये लोगों की पिटाई कर
रहा था। उमर का साथी अब्दुल रहमान कराची से फोन पर हैंडलर वसी के साथ था। वसी उमर
को फोन पर कुछ निर्देश देना चाहता था, लेकिन उमर फोन पर आने में आनाकानी कर रहा
था। इस वजह से अब्दुल रहमान और उमर के बीच गाली गलौच भी हो गई। अब्दुल रहमान ने
उमर को गधा और बेवकूफ कहा। वसी ने अब्दुल रहमान से कहा कि वो उमर को आग लगाने का
निर्देश दे, लेकिन उमर सुनने को तैयर नहीं था। वो बंधकों को लात और घूसों से पीटने
में ही लगा रहा। एक बार वो कुछ पलों के लिये फोन पर आया भी, लेकिन फिर उसने फोन
वापस अब्दुल रहमान को थमा दिया।
7-होटल के भीतर जो 4 आतंकी दाखिल हुए थे उनमें
से एक आतंकी खुद अपनी ही गोली से घायल हो गया था। ये आतंकी था अबू अली।
अबू अली ने जब ताज होटल में घुसकर अपनी एके-47 राईफल से फायरिंग करनी शुरू की
तो एक गोली फर्श से टकराकर बाऊंस हुई और अबू अली के पैर में जाकर लगी। एटीएस ने
आतंकियों की उनके हैंडलर से जिस बातचीत को रिकार्ड किया उससे ये बात सामने आई। अली
हैंडलर वसी से कहता है- “ मेरे
लिये दुआ करो। अपने पैर की वजह से मैं वो नहीं कर पा रहा हूं जो दिल में है। चलते
वक्त दर्द होता है। जो काम अकेले मेरा था वो सभी को मिलकर करना पड रहा है। मेरा
पैर मेरा साथ नहीं दे रहा। अल्लाह से दुआ करो कि हम उन्हें नाच नचायें”।
8-पाकिस्तान अब तक इस बात से इंकार करते आया है कि मुंबई
पर हमला करने वाले आतंकवादियों को सरकारी मदद मिली, लेकिन ये किताब पाकिस्तान की
केंद्रीय जांच एजेंसी एफआईए के सूत्रों के हवाले से बताती है कि हमले को पाक
एजेंसियों का आधिकारिक सहयोग मिला था।
“अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद पाकिस्तान की फेडरल इनवेस्टीगेटिव
अथॉरिटी ने अपने देश में हमलों की जांच शुरू की। हालांकि, पाकिस्तान ये कहता रहा
कि भारत ने इस मामले में पुख्ता सबूत नहीं दिये हैं जो कि कुछ हद तक सच है, जांच
से जुडे एफआईए के कुछ अफसर निजी तौर पर ये मानते हैं कि जिस पैमाने पर ऑपरेशन
बॉम्बे को अंजाम दिया गया, वो बिना आधिकारिक जानकारी और मंजूरी के नहीं हो सकता”।.
9-दाऊद गिलानी उर्फ डेविड कॉलमैन हेडली आतंकी संगठन
लश्कर ए तैयबा के लिये काम करता था, लेकिन उसके रिश्ते पाकिस्तान सरकार और वहां के
आला राजनेताओं से भी थे। इस बात का खुलासा हुआ हेडली के पिता की मौत होने पर। 26-11
के हमले के एक महीने के बाद हेडली के पिता सय्यद सलीम गिलानी की लाहौर में मौत हो
गई। हेडली उस वक्त देश से बाहर था, लेकिन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी परिवार
से अपनी संवेदनाएं जताने के लिये उनके घर आये।हेडली की ओर से अपने दोस्त को भेजे
गये एक ईमेल से ये बात सामने आई।
10- बधवार पार्क-वो जगह जहां 26 नवंबर 2008 की शाम पाकिस्तान से आये 10
आतंकवादी उतरे थे। मछुआरों की बस्ती के पास मौजूद इस जगह को लैंडिंग पॉइंट के तौर
पर इस्तेमाल करने की सलाह आईएसआई के एक डबल एजेंट ने दी थी। हेडली ने बाद में आकर
इस जगह की तस्वीरें लीं और यहां का जीपीआरएस लोकेशन नोट किया।
इन खुलासों से ये साफ होता है कि सुरक्षा एजेंसियों के सामने कई ऐसे मौके आये जब आतंकियों पर काबू पाया जा सकता था और जान ओ माल के नुकसान को काफी कम किया जा सकता था...लेकिन किसी की लापरवाही, किसी की ढिलाई, किसी की कडे फैसले न ले पाने की कमजोरी और किसी की बेवकूफी ने मुंबई के दुश्मनों को उनके मंसूबों में कामियाब कर दिया। 5 साल बाद ताज और ट्राईडेंट आज फिर गुलजार हैं, सीएसटी रेल स्टेशन पर मुसाफिरों की चहल पहल भी पहले जैसी ही है, लेकिन उन तारीखों के दौरान इन इमारतों में जो नरसंहार हुआ था वो इसके इतिहास का हमेशा के लिये काला हिस्सा बन गया है।
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