गैंडों के बीच से निकली प्रेम कहानी
काजीरंगा/नाम सुनते ही पूर्वोत्तर में सुदूर बसे असम की एक एेसी तलहटी का नाम कौंधने लगता हैं.जहां गैंडे ही गैंडे नजर आए लेकिन ब्रम्हापु़त्र नदी के किनारे बसे इस जंगल के विराना कैसे काजीरंगा बना यह कहानी बहुत कम लोगों को पता है.यह जंगल भी दो युवाआें के प्रेम का प्रहारी न बन पाया.जंगल के बगल से निकलती नदी इस इस प्रेम की उफनती नदी को पार नहीं पार्इ आैर इसी जंगल में यह प्रेम कहानी भी खो गर्इ. प्रेम के नाले दे देकर दुनिया के रखवालों ने उन्हें एेसा विदा किया की वह इन्हीं जंगलों खो गए.
जी हां यह काजीरंगा नहीं.काजी आैर रंगा हैं. प्रेमी प्रेमिका थे, जिनके प्यार के बीच दुनिया की दीवार लेकर बिरादरी वालों ने मंजूरी नही दी। उनको इतना उत्पीड़ित किया कि वे यहां के घनघोर जंगलों में भागकर जाने कहां खो गए। कालांतर में लैला मजनू की तरह कथा कहानियों के पात्र बने। अब इन दोनों के नाम पर यह इलाका काजीरंगा कहलाता है। असम का विख्यात काजीरंगा अभयारण्य यहीं पर है.
गैंडों जो किसी देवता की सवारी नहीं
एेसे तो हमारे हिंदू मान्यता के अनुसार ३३ करोड देवता हैं. इनके परिवहन के लिए सवारी भी चयनित है. इसमें सभी जानवरी किसी न किसी की सवारी हैं. पर यह सौभाग्य गैंडे को नहीं मिला. काजीरंगा अभयारण्य गैंडों के लिए विख्यात है। गैंडों का गर्भाधान काल 16 से 18 महीना है। बच्चे का वजन होता है 40 से 60 किलो तक होता है। मां का दूध वह तीन साल तक पीता है। इसकी रफ्तार 80 किमी तक है यानी बिना हाइवे स्पोटर्स कार लेकिन यही इकलौता निरीह जानवर है जिसे किसी देवी-देवता ने अपना वाहन नहीं बना।
खत्म हो रहा है काजीरंगा
काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान मध्य असम में 430 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसमें भारतीय एक सींग वाले गैंडे राइनोसेरोस यूनीकोर्निस का निवास है। काजीरंगा को वर्ष 1905 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। सर्दियों में यहाँ साइबेरिया से कई मेहमान पक्षी भी आते हैं हालाँकि इस दलदली भूमि का धीरे.धीरे ख़त्म होते जाना एक गंभीर समस्या है। काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के बाजए विभिन्न प्रजातियों की चीलें और तोते आदि भी पाये जाते हैं। यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहरों में से एक काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान साल 2005 में 100 वर्ष का हो गया है।
परिवहन
काज़ीरंगा गोवाहाटी से 250 किलोमीटर पूर्व और जोरहट से 97 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यह गोवाहाटी हवाईअड्डे से 239 किलोमीटर और जोरहट से 97 किलोमीटर दूर है। काज़ीरंगा जाने के लिए नियमित रूप से बसें आैर टैक्सी उपलब्ध हैं। काज़ीरंगा जाते वक़्त मिलने वाले बस पड़ाव को श्कोहोरा के नाम से जानते हैं। यहाँ से रेल सेवा 75 किलोमीटर दूर है।
अंडाकार काजीरंगा
पहले तो उसे अवैध शिकारियों से ही खतरा था लेकिन अब बाढ़ भी उसे लील रही है. 2006 की गिनती के मुताबिक असम के इस पार्क में 1855 गैंडे थे लेकिन शिकार और बाढ़ की वजह से यह तादाद तेजी से घट रही है बीते साल 21 गैंडे शिकारियों के हत्थे चढ़ गए थेण् और इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान यह आंकड़ा 18 तक पहुंच गया है. काजीरंगा का आठ सौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस पार्क की एक सीमा ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर दूर नगांव और गोलाघाट जिले में आठ सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क इन गैंडों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के दूसरे जानवरों पशुपक्षियों व वनस्पतियों से भरा पड़ा है. उत्तर में ब्रह्मपुत्र और दक्षिण में कारबी.आंग्लांग की मनोरम पहाड़ियों से घिरे अंडाकार काजीरंगा को आजादी के तीन साल बाद 1950 में वन्यजीव अभयारण्य और 1974 में नेशनल पार्क का दर्जा मिलाण् इसकी जैविक और प्राकृतिक विविधताओं को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 1985 में इसे विश्व घरोहर स्थल का दर्जा दिया. माना जाता है कि इन गैडों की सींग से यौनवर्द्धक दवाएं बनती हैं इसलिए अमेरिका के अलावा दक्षिण एशियाई देशों में इनकी भारी मांग है अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे की सींग बीस लाख रुपए प्रति किलो की दर से बिक जाती है शिकारी इन गैंडों को मार कर इनकी सींग निकाल लेते हैं
काजीरंगा/नाम सुनते ही पूर्वोत्तर में सुदूर बसे असम की एक एेसी तलहटी का नाम कौंधने लगता हैं.जहां गैंडे ही गैंडे नजर आए लेकिन ब्रम्हापु़त्र नदी के किनारे बसे इस जंगल के विराना कैसे काजीरंगा बना यह कहानी बहुत कम लोगों को पता है.यह जंगल भी दो युवाआें के प्रेम का प्रहारी न बन पाया.जंगल के बगल से निकलती नदी इस इस प्रेम की उफनती नदी को पार नहीं पार्इ आैर इसी जंगल में यह प्रेम कहानी भी खो गर्इ. प्रेम के नाले दे देकर दुनिया के रखवालों ने उन्हें एेसा विदा किया की वह इन्हीं जंगलों खो गए.
जी हां यह काजीरंगा नहीं.काजी आैर रंगा हैं. प्रेमी प्रेमिका थे, जिनके प्यार के बीच दुनिया की दीवार लेकर बिरादरी वालों ने मंजूरी नही दी। उनको इतना उत्पीड़ित किया कि वे यहां के घनघोर जंगलों में भागकर जाने कहां खो गए। कालांतर में लैला मजनू की तरह कथा कहानियों के पात्र बने। अब इन दोनों के नाम पर यह इलाका काजीरंगा कहलाता है। असम का विख्यात काजीरंगा अभयारण्य यहीं पर है.
गैंडों जो किसी देवता की सवारी नहीं
एेसे तो हमारे हिंदू मान्यता के अनुसार ३३ करोड देवता हैं. इनके परिवहन के लिए सवारी भी चयनित है. इसमें सभी जानवरी किसी न किसी की सवारी हैं. पर यह सौभाग्य गैंडे को नहीं मिला. काजीरंगा अभयारण्य गैंडों के लिए विख्यात है। गैंडों का गर्भाधान काल 16 से 18 महीना है। बच्चे का वजन होता है 40 से 60 किलो तक होता है। मां का दूध वह तीन साल तक पीता है। इसकी रफ्तार 80 किमी तक है यानी बिना हाइवे स्पोटर्स कार लेकिन यही इकलौता निरीह जानवर है जिसे किसी देवी-देवता ने अपना वाहन नहीं बना।
खत्म हो रहा है काजीरंगा
काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान मध्य असम में 430 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसमें भारतीय एक सींग वाले गैंडे राइनोसेरोस यूनीकोर्निस का निवास है। काजीरंगा को वर्ष 1905 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। सर्दियों में यहाँ साइबेरिया से कई मेहमान पक्षी भी आते हैं हालाँकि इस दलदली भूमि का धीरे.धीरे ख़त्म होते जाना एक गंभीर समस्या है। काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के बाजए विभिन्न प्रजातियों की चीलें और तोते आदि भी पाये जाते हैं। यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहरों में से एक काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान साल 2005 में 100 वर्ष का हो गया है।
परिवहन
काज़ीरंगा गोवाहाटी से 250 किलोमीटर पूर्व और जोरहट से 97 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यह गोवाहाटी हवाईअड्डे से 239 किलोमीटर और जोरहट से 97 किलोमीटर दूर है। काज़ीरंगा जाने के लिए नियमित रूप से बसें आैर टैक्सी उपलब्ध हैं। काज़ीरंगा जाते वक़्त मिलने वाले बस पड़ाव को श्कोहोरा के नाम से जानते हैं। यहाँ से रेल सेवा 75 किलोमीटर दूर है।
अंडाकार काजीरंगा
पहले तो उसे अवैध शिकारियों से ही खतरा था लेकिन अब बाढ़ भी उसे लील रही है. 2006 की गिनती के मुताबिक असम के इस पार्क में 1855 गैंडे थे लेकिन शिकार और बाढ़ की वजह से यह तादाद तेजी से घट रही है बीते साल 21 गैंडे शिकारियों के हत्थे चढ़ गए थेण् और इस साल के पहले आठ महीनों के दौरान यह आंकड़ा 18 तक पहुंच गया है. काजीरंगा का आठ सौ वर्ग किलोमीटर में फैले इस पार्क की एक सीमा ब्रह्मपुत्र नदी से मिलती है असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर दूर नगांव और गोलाघाट जिले में आठ सौ वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला यह पार्क इन गैंडों के अलावा दुर्लभ प्रजाति के दूसरे जानवरों पशुपक्षियों व वनस्पतियों से भरा पड़ा है. उत्तर में ब्रह्मपुत्र और दक्षिण में कारबी.आंग्लांग की मनोरम पहाड़ियों से घिरे अंडाकार काजीरंगा को आजादी के तीन साल बाद 1950 में वन्यजीव अभयारण्य और 1974 में नेशनल पार्क का दर्जा मिलाण् इसकी जैविक और प्राकृतिक विविधताओं को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 1985 में इसे विश्व घरोहर स्थल का दर्जा दिया. माना जाता है कि इन गैडों की सींग से यौनवर्द्धक दवाएं बनती हैं इसलिए अमेरिका के अलावा दक्षिण एशियाई देशों में इनकी भारी मांग है अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे की सींग बीस लाख रुपए प्रति किलो की दर से बिक जाती है शिकारी इन गैंडों को मार कर इनकी सींग निकाल लेते हैं
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