अभियुक्त या फिर अपराधी को क्यों पहनाते है कैप बनाते हैं बंदर
आप हमेशा देखते होंगे कोर्ट के बाहर निकलते वक्त या फिर थाने से ले जाते वक्त अारोपियों का चेहरा ढक दिया जाता है.किसी भी गिरफ्तार क्रिमिनल को ब्लैक मंकी कैप पहनाया जाता है । इसके दो ही मकसद होते हैं । पहला कि टीआई परेड (टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड) के बाद अभियुक्त को ट्रायल के वक्त यह कहकर बचने का मौका न मिले कि मीडिया में तस्वीरें छपी थीं,सो टीआई परेड में पहचान का कोई वजूद नहीं है । दूसरा कि क्रिमिनल के चेहरे का खौफ सोसायटी में न फैले ।इस परेड में अभियुक्त की पहचान कराई जाती है । परेड के वक्त साथ में और कई बराबर कद-काठी के बंदी होते हैं । इनमें पहचान करनी होती है । टी आई परेड वैसे अभियुक्त की कराई जाती है,जिसकी पहचान वारदात के पहले व बाद में इस परेड के समय तक किसी रुप में किसी माध्यम से न की गई हो । तीसरा मकसद यह होता है कि अगर आरोपी निर्दोष करार दिया जाता है तो उसके मान सम्मान को प्रचारित कर दिए जाने से ठेस न पहुंचे.
यह है कानून
टी आई परेड में शामिल होने को अभियुक्त को मजबूर नहीं किया जा सकता । मतलब मर्जी है । दिल्ली निर्भया रेप कांड में भी कई अभियुक्तों ने टी आई परेड में शामिल होने से इंकार कर दिया था लेकिन यह इंकार केस के ट्रायल में अभियुक्त के खिलाफ जाता है । पर विक्टिम ने पहचान से इंकार कर दिया,तो अभियुक्त को मदद मिल जाती है । पहचान से इंकार का मतलब केस से अभियुक्त का सीधा बरी हो जाना नहीं है । तब भी तफ्तीश के अन्य सबूतों और गवाहों के बयान पर कोर्ट गौर करती है ।
यहां फंस जाता है मामला
जब प्राथमिकी के वक्त ही विक्टिम से अभियुक्त की पहचान की तस्वीरें दिखा कर होती है,तो फिर अब और टी आई परेड का औचित्य क्या है ?नामी गिरामी हस्तियों के मामले में तो इसका आैर भी बाजा बज जाता है.
आप हमेशा देखते होंगे कोर्ट के बाहर निकलते वक्त या फिर थाने से ले जाते वक्त अारोपियों का चेहरा ढक दिया जाता है.किसी भी गिरफ्तार क्रिमिनल को ब्लैक मंकी कैप पहनाया जाता है । इसके दो ही मकसद होते हैं । पहला कि टीआई परेड (टेस्ट आइडेंटीफिकेशन परेड) के बाद अभियुक्त को ट्रायल के वक्त यह कहकर बचने का मौका न मिले कि मीडिया में तस्वीरें छपी थीं,सो टीआई परेड में पहचान का कोई वजूद नहीं है । दूसरा कि क्रिमिनल के चेहरे का खौफ सोसायटी में न फैले ।इस परेड में अभियुक्त की पहचान कराई जाती है । परेड के वक्त साथ में और कई बराबर कद-काठी के बंदी होते हैं । इनमें पहचान करनी होती है । टी आई परेड वैसे अभियुक्त की कराई जाती है,जिसकी पहचान वारदात के पहले व बाद में इस परेड के समय तक किसी रुप में किसी माध्यम से न की गई हो । तीसरा मकसद यह होता है कि अगर आरोपी निर्दोष करार दिया जाता है तो उसके मान सम्मान को प्रचारित कर दिए जाने से ठेस न पहुंचे.
यह है कानून
टी आई परेड में शामिल होने को अभियुक्त को मजबूर नहीं किया जा सकता । मतलब मर्जी है । दिल्ली निर्भया रेप कांड में भी कई अभियुक्तों ने टी आई परेड में शामिल होने से इंकार कर दिया था लेकिन यह इंकार केस के ट्रायल में अभियुक्त के खिलाफ जाता है । पर विक्टिम ने पहचान से इंकार कर दिया,तो अभियुक्त को मदद मिल जाती है । पहचान से इंकार का मतलब केस से अभियुक्त का सीधा बरी हो जाना नहीं है । तब भी तफ्तीश के अन्य सबूतों और गवाहों के बयान पर कोर्ट गौर करती है ।
यहां फंस जाता है मामला
जब प्राथमिकी के वक्त ही विक्टिम से अभियुक्त की पहचान की तस्वीरें दिखा कर होती है,तो फिर अब और टी आई परेड का औचित्य क्या है ?नामी गिरामी हस्तियों के मामले में तो इसका आैर भी बाजा बज जाता है.
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