Saturday, March 26, 2016

होली के रंग-बदरंग चेहरे


सीन एक खासा कोठी 
होली की तो बात है.हम चार पांच मित्र राजा पार्क से निकल कर गुलाबी नगरी की रंगीन होली देखने के लिए निकले. सब कुछ संयत भाव से तैयार मन मस्तिष्क चुस्त आैर रंग का मनोरम भाव लिए हम सब पहुंच गए खासा कोठी.शानदार उत्सव क्या देशी क्या विदेशी सब रंगीन नजर अाए उपर से बाॅलीवुड के करिश्मार्इ गाने.गुलाल के गुबार में हमारे भाव गायब से हो गए. सब कुछ र्निविकार रूप से संस्कृति को प्रतिष्ठत करता नजर आया.एक साथ एक सुर में कहा इसे कहते हैं होली बिना हुडदंग.जो सबको रास आए अपनी संस्कृति में मिलाए लेकिन किसी का रंग धूमिल न होने पाए.
सीन दो चांदपोल
होली का हुडदंग नहीं अल्हडपन कहिए जनाब. जो सच में आपको अपने रंग में डूबो देगा.देशी ताल पर थिरकते लोग आैर वह भी विदेशी ठसक के साथ.चाल फिर भी संयत आैर कमाल तो कमाल है.मजाल है कि बिना आपको चाहे को रंग लगा दे.आप चहेंगे तो रंग लगाएंगे आैर मनुहार कर आपको गुझिया भी खिलाएंगे आैर उनके रंग में रंगे तो आपको बिना शर्त नजाएंगे यह नजारा हर किसी को आकर्षिक करता है
सीन तीन ब्रम्हापुरी
रंग की बदरंग नियत आप पर चढे हर रंग को तोड देती है. करीब १४ साल की नन्हीं उंगुलिया जिन्हें पता नहीं सही से कलम पकडना आया भी की नहीं लेकिन उरोज मसलने के लिए मचलती हैं.इतना ही नहीं संस्कृति को ताक पर रख करीब २० से २२ साल की विदेशी कन्या के उरोज को न केवल पकड लेती हैं बल्कि टाॅप में हाथ डालकर रंग के बहाने उन्हें मसलती हैं.गिरोह की शक्ल में पहुंचे ये हुडदंगी पूरे रंग को बदरंग कर देते हैं. जब तक हम सब पहुंचते हैं सब भाग लेते हैं आैर लडकी होटल में भागती है.सबकुछ बेहतर होते हुए यहां आकर बिखर जाता है.समझ नहीं आता है कि इस उम्र में दिमाग इतना बदरंगा क्यों है.
मुंबर्इ में गणपति विर्सजन के दौरान यह नापाक हरकत आपको याद होगी
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