Sunday, September 19, 2010

खलवतों में साँप जैसे काटे हैं दिन पाप जैसे

चलो कुछ बात करते हैं
ज़ुबाँ, जज़्बात करते हैं

कही न दिन गुज़र जाए
मोहब्बत फिर न मर जाए
जो है एहसास ज़िंदा ,
तो अभी मुलाकात करते हैं
चलो कुछ बात करते हैं

रहे न मिलन अधूरा अब
मुझे तुम पूरा कर दो अब
मिला के लब से लब को ,
शबनमी ये रात करते हैं
चलो कुछ बात करते हैं

खलवतों में साँप जैसे
काटे हैं दिन पाप जैसे
अभी सूने से आँगन में,
सुरमई बरसात करते हैं
चलो कुछ बात करते हैं

1 comment:

  1. कही न दिन गुज़र जाए
    मोहब्बत फिर न मर जाए
    जो है एहसास ज़िंदा ,
    तो अभी मुलाकात करते हैं
    चलो कुछ बात करते हैं

    दिल को छू लेने वाली रचना
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बधाई ......

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