Sunday, September 19, 2010

ख़्वाब का दर बंद है / शहरयार

मेरे लिए रात ने
आज फ़राहम किया
एक नया मर्हला ।

नींदों ने ख़ाली किया
अश्कों से फ़िर भर दिया
कासा: मेरी आँख का
और कहा कान में

मैंने हर एक जुर्म से
तुमको बरी कर दिया
मैंने सदा के लिए
तुमको रिहा कर दिया

जाओ जिधर चाहो तुम
जागो कि सो जाओ तुम
ख़्वाब का दर बंद है

1 comment:

  1. मैंने हर एक जुर्म से
    तुमको बरी कर दिया
    मैंने सदा के लिए
    तुमको रिहा कर दिया

    बहुत सुंदर पंक्तियां लिखी हैं, भावपूर्ण अभिव्यक्ति..बधाई

    http://veenakesur.blogspot.com/

    ReplyDelete

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...