Sunday, September 19, 2010

फ़ैज़ाबाद के फादर ऑफ फोटोग्राफी QUSBA SE SAABHAR...RAVISH KUMAR


फ़ैज़ाबाद की गलियों में भटकता हुआ मैं एक फोटो स्टुडियो में चला गया। गली के किनारे से अंदर झांका तो कुछ ब्लैक एंड व्हाईट तस्वीरों पर नज़र पड़ी। ख़ासकर इन महिला की तस्वीर पर। ऐसा लगा कि इनकी खूबसूरती हमेशा के लिए एक फ्रेम में क़ैद हो चुकी है। ज़माने का इतना ही असर पड़ा है कि श्वेत श्याम इन तस्वीरों पर लाल रंग की बिंदी और लिप्स्टिक चस्पां कर दी गई है। मैं अंदर आ गया। हलो, मैं रवीश हूं। टीवी वाला पत्रकार। दुकानदार ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। फिर भी अंदर आ गया। इस बारी ठीक से नमस्ते की और सवाल दाग दिया कि ये चारों तस्वीरें किनकी हैं।
दुकान के मालिक ने बताना शुरू किया कि आप जिस तस्वीर की बात कर रहे हैं वो फैज़ाबाद के ही एक रेलवे अफसर की बेटी हैं। ये फोटो मैंने 1962 में खींची थी। आशी दत्ता नाम है। इस तस्वीर के खिचे जाने के 48 साल बाद आशी दत्ता अब कैसी लगती होंगी कहना मुश्किल है। लेकिन कोई भी अपनी इस खूबसूरती को हमेशा ऐसे फ्रेम में देखकर खुश ही होता होगा। फ़ैज़ाबाद में आज भी एक ढंग का सिनेमा हॉल नहीं है। उस ज़माने में तो कुछ भी नहीं रहा होगा फिर भी अदायें सिने तारिकाओं की तरह हैं। एक लड़की की इस अदा से कई चीज़ों का अंदाज़ा मिलता है। कपड़े की स्टाइल,आकाक्षांएं,आधुनिक दिखने की चाह और कोई ख्वाब जो शायद फैज़ाबाद की सेटिंग में नहीं किसी मुंबई लंदन की सेटिंग में रची गई हो। जगत नारायण गुप्ता की इजाज़त से ये तस्वीरें ब्लॉग के लिए खींच लीं। आशी जी इस वक्त पंजाब में कहीं रहती हैं। इनके पति ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हो चुके हैं। अब देखिये एक फोटो शॉप के मालिक को अपनी तस्वीर की इतनी लेटेस्ट रिपोर्ट मालूम है। आशी जी की तीनों तस्वीरें दुकान में लगी थीं। वहां भी सार्वजनिक थीं और ब्लॉग पर भी सार्वजनिक हैं।
(जगत नारायण गुप्ता की तस्वीर)
दुकान के मालिक जगत नारायण गुप्ता ने कहा कि फ़ैज़ाबाद में फोटोग्राफी मैंने शुरू की है। 1953 में। तब फोटोग्राफी आर्ट थी और अब दुकान है। फैज़ाबाद में फोटो की पहली दुकान मेरी थी।मेरी बातचीत जमने लगी। जगत नारायण गुप्ता ने कहा कि फ़ैज़ाबाद में मैंने कई लड़कों को ट्रेनिंग दी। पहले लोग फोटो नहीं खिंचाते थे। मैं शादियों में खुद से फोटो खींचता था। बाद में दिखाता था तो खुश हो जाते थे। इस तरह से फोटोग्राफी को यहां पोपुलर किया। जगत नारायण के बेटे ने पीछे से आवाज़ दी कि मेरे पिताजी फ़ैज़ाबाद में फोटोग्राफी के फादर हैं।

जगत जी बताने लगे कि कैसे इंदिरा गांधी फ़ैज़ाबाद आईं। एक पुल का उद्याटन करने। गैमन इंडिया के अफसर ने कहा कि एक अल्बल गिफ्ट करना है उन्हें। जगत जी ने एक डीएसपी सहित सरकारी जीप की मांग कर दी ताकि वे प्रधानमंत्री की सुरक्षा के बीच से आसानी से निकल सकें। इंदिरा गांधी ने पुल का उद्याटन किया। जगत जी कहते हैं कि मैं बिल्कुल करीब था। पहली तस्वीर तब ली जब वो कार से उतरी थीं। फिर जब मंच पर आईं तो मैं बिल्कुल पास से तस्वीर ले रहा था। चार-पांच तस्वीरें लेने के बाद मैं जल्दी से स्टुडियो भागा। एक घंटे में फिल्म डेवेलप की। फिर उसी सरकारी जीप से एयरपोर्ट गया जहां वीआईपी लाउंज में इंतज़ार कर रही थीं। मैंने जब अल्बम सौंपी तो इंदिरा जी हैरान हो गईं। एक फोटोग्राफर के पास कितनी यादें होती हैं। कितने चेहरे होते होंगे।


(जानकी प्रसाद गुप्ता)
ये तस्वीर जगत नारायण गुप्ता के पिता जानकी प्रसाद गुप्ता की है। लॉन टेनिस के रैकेट के साथ। जानकी प्रसाद गुप्ता फ़ैज़ाबाद के ही किसी बलरामपुर इस्टेट में शिक्षक थे लेकिन अंग्रेजों के साथ लॉन टेनिस खेलते थे। 1930 में फैज़ाबाद में एक सरकारी स्कूल का मास्टर लॉन टेनिस खेल रहा था। ये शाही पोज़ पहले राजाओं और गोरों की रही होगी बाद में अन्य भारतीयों ने भी इसकी कॉपी करनी शुरू कर दी होगी। कुर्सी पर सीधे बैठे हैं जानकी प्रसाद जी। गोद में रैकट है। ये तब का दौर रहा होगा जब आधुनिकता निजी संपर्कों से पसर रही थी न कि मीडिया जैसे माध्यम के सहारे। आज मीडिया को लगता है कि आधुनिकता वही फैला रहा है।

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