Sunday, April 11, 2010

मन को मोहती मसालों की महक

जब 8 मार्च को महिला आरक्षण बिल पर संसद में बावेला मचा था तो इससे बेखबर एक मां और उसकी दो बेटियां अपने काम में जुटी हुई थीं. किराए के अपने घर में मां एक छोटी मशीन से मसाला पीस रही थीं तो एक बेटी उसे तौल रही थी और दूसरी उन्हें पैक कर रही थी. टीवी देखने की फुर्सत किसे है? यहां तो सुस्ताने का भी मौका नहीं है.

झारखंड के गिरिडीह जिले के सरिया कस्बे के इस परिवार में हर रोज मां-बेटियों को इसी तरह अपने काम में लीन देखा जा सकता है. यह परिवार मसाले का गृह-उद्योग चलाता है और ब्रांड का नाम है- गृहिणी. इस ब्रांड के मसालों की सरिया ही नहीं आसपास के इलाकों में भी भारी मांग है. वजह है इसकी बेहतरीन क्वालिटी. आलम ये है कि स्थानीय किराने की दुकानों में तड़क-भड़क और रंगीन कागजी डिब्बों में पैक मसालों के मुकाबले पारदर्शी प्लास्टिक की थैलियों में बंद गृहिणी ब्रांड के मसाले ज्यादा नजर आते हैं.

आज गृहिणी ब्रांड मसालों की इतनी पूछ है तो इसके पीछे हैं 45 साल की पार्वती देवी और उनकी दो बेटियों रेखा और किरण की भरपूर मेहनत. घर के मुखिया और पार्वती के पति भेखलाल यादव भी मानते हैं कि उनकी पत्नी और बेटियों की वजह से ही गृहिणी ब्रांड मसाले की इतनी मांग हो गई है कि उसे पूरा कर पाना बूते से बाहर हो गया है.

एक वक्त था जब उनके मसाले पैक किए महीनों तक पड़े रह जाते थे और मां-बेटियां मसोसकर रह जाती थीं. मगर पांच साल बाद अब कहानी बिल्कुल अलग है.

असल में भेखलाल खेतिहर किसान हैं मगर खेती-किसानी में अब जान कहां रही. कुछ धंधे-पानी के ख्याल से वे अपने पैतृक गांव पावापुर से सरिया कस्बे के करीब चंद्रमारणी गांव आ पहुंचे. मगर कोई रास्ता नहीं सुझ रहा था. तभी पार्वती देवी ने मसाला बेचने का सुझाव दिया. पर लाख टके का सवाल था कि शुरुआत कैसे की जाए और पूंजी कहां से लाएं? यह भी डर था कि कहीं धंधे में पैसा भी फंस जाए और बात भी ना बने तो फिर क्या होगा?

उनके दोनों बेटे अलग-अलग काम में लगे थे और बेटियां स्कूल में पढ़ रही थीं. मगर पत्नी और बेटियों ने भरोसा दिलाया और भेखलाल ने यहां-वहां से पूंजी जुटाई. और इस तरह महज पांच किलो हल्दी की डली से वर्ष 2005 में गृहिणी ब्रांड मसाले का सफर शुरु हुआ. आज उनके मसालों की महक न जाने कितनी रसोइयों को गुलजार कर रही है. हल्दी, धनिया, जीरा, काली मिर्च, लाल मिर्च, गरम मसाला, चाट मसाला.. वे ये तमाम मसाले बना रहे हैं और छोटी पैकिंग में बेच रहे हैं.

मां-बेटियों की मेहनत से मसालों का उत्पादन तो शुरू हो गया मगर आगे का रास्ता आसान नहीं था. मसालों के पैकेट से भरा झोला लटकाए भेखलाल दरवाजे-दरवाजे जाते पर निराशा हाथ लगती. गांवों में सिल-बट्टे पर मसाले पीसे जाते हैं तो कस्बाई इलाकों में मिक्स मसाले का पाउडर खरीदे कौन? जब शाम को वे घर लौटते तो उनके बुझे चेहरे से मां-बेटियां समझ जातीं कि मामला जम नहीं रहा है. हालांकि यादव परिवार हताश नहीं हुआ.

कुछ लोगों ने जब इस मसाले का इस्तेमाल किया तो उन्हें माजरा समझ में आया और फिर यहीं से माउथ-टू-माउथ पब्लिसिटी शुरू हुई और फिर देखते ही देखते इलाके में गृहिणी ब्रांड की मांग शुरू हो गई.

स्थानीय दुकानदारों ने भी गृहिणी ब्रांड को दुकानों में रखना शुरू कर दिया. पहले दुकानदार ये कहकर उनके मसालों को खारिज कर देते थे कि दाम ज्यादा हैं. मगर पार्वती देवी कहती हैं, “दाम ज्यादा होने की वजह है अच्छी क्वालिटी.” और इसी क्वालिटी के लिए वे बाजार से आई हल्दी को सीधे मशीन में नहीं डालतीं. बल्कि हल्दी को धोने और सुखाने के बाद अच्छी तरह से एक-एक डली को देखकर पीसा जाता है. ऐसा ही दूसरे मसालों के साथ होता है. मसलन, लाल मिर्च के डंठल को अलग करके पीसा जाता है तो धनिया को पीसने से पहले उसे अच्छी तरह से साफ किया जाता है.

मिर्च से अलग किए डंठल दिखाते हुए पार्वती देवी कहती हैं, “गुणवत्ता से समझौता करना होता तो आपको ये ढेर नहीं दिखते.” भेखलाल कहते हैं कि एक बार जो इन मसालों का इस्तेमाल कर लेता है, वह इसकी कीमत चुकाने में संकोच नहीं करता.

यदि इसे उद्यमिता की व्यावसायिक शब्दावली में कहें तो मां-बेटियां मसालों के उत्पादन का भार संभालती हैं तो भेखलाल विपणन और वितरण का. हफ्ता-पंद्रह दिन में भेखलाल कोलकाता या फिर आसनसोल की मंडियों से कच्चा माल लाते हैं. मसाले की पिसाई और पैकिंग होने के बाद उन्हें वे बाजार तक पहुंचाने का काम करते हैं.
हर लेबल पर एक संदेश भी होता है. संदेश बड़े सार्थक होते हैं. मसलन धनिया पाउडर के पैकेट पर एक संदेश लिखा है- “जब तक सूर्य नहीं उगता तब तक मिट्टी के दीप ही जला दिए जाएं.”

जैसे-जैसे समय बीतता गया बाजार में मांग बढ़ती चली गई. कुछ साल पहले ही यादव परिवार ने एक सेमी ऑटोमैटिक मशीन खरीदी है जिससे ज्यादा मात्रा में मसालों की पिसाई हो जाती है. काम भी बढ़ गया है इसलिए और लोगों की भी जरूरत महसूस होने लगी है. भेखलाल अब एक और नई मशीन बिठाना चाह रहे हैं ताकि मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बना रहे.

वास्तव में बढ़ती मांग के बीच इस परिवार ने बैंक से कर्ज लेने की कोशिश भी की थी मगर कर्ज लेने के अपने झमेले हैं. सो, उन्होंने बैंक के बजाए अपने उद्यम और अपनी मेहनत पर भरोसा किया.

पार्वती देवी अनपढ़ जरूर हैं मगर उन्हें शिक्षा का मर्म पता है. इसीलिए उन्होंने बेटियों की पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया. दोनों बेटियां रेखा और किरण नजदीक के सरिया कॉलेज पढ़ने जाती हैं और पढ़ाई से फारिग होने के बाद मां के साथ हाथ बंटाती हैं.

मसाला उद्योग सफल होने पर यादव परिवार ने नई चीजों पर भी हाथ आजमाना शुरू कर दिया है. वे दलिया, सत्तू और बेसन भी बना रहे हैं और इन चीजों की भी बाजार में अच्छी-खासी मांग हो चली है. इसके अलावा अगरबत्ती निर्माण पर भी काम चल रहा है.

स्थानीय पत्रकार लक्ष्मी नारायण पांडेय कहते हैं कि इलाके का शायद ही कोई घर हो जहां गृहिणी ब्रांड का एक ना एक प्रोडक्ट इस्तेमाल नहीं होता हो.

गृहिणी ब्रांड की पैकेजिंग भी गजब की है. हर लेबल पर एक संदेश भी होता है. संदेश बड़े सार्थक होते हैं. मसलन धनिया पाउडर के पैकेट पर एक संदेश लिखा है- “जब तक सूर्य नहीं उगता तब तक मिट्टी के दीप ही जला दिए जाएं.” क्या बात है? सही सामान और सार्थक संदेश की ऐसी मिसाल शायद ही मिले.

No comments:

Post a Comment

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...