Thursday, April 1, 2010

अंधेरों से भरी रोशनी

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के सांईखेड़ा विकासखंड में एनटीपीसी के कोयला बिजलीघर लगने की खबर से गांववासी आंदोलित हैं. वे अपने घर-जमीन बचाने के लिए महात्मा गांधी की राह पर चलकर सत्याग्रह कर रहे हैं. धरना, प्रदर्शन और संकल्प का सिलसिला चल रहा है. अलग-अलग गांवों के लोगों ने कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं मिला है.
अब गांव वालों ने अपनी कमर कसनी शुरु कर दी है. उन्होंने आंदोलन तेज करते हुए पिछले दिनों नर्मदा जल में खड़े होकर संकल्प लिया है कि जान देंगे पर जमीन नहीं. गांववासियों की एकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों संपन्न हुये पंचायत चुनाव का उन्होंने पूरी तरह से बहिष्कार किया था. हालत ये हुई कि इन गांवों से एक भी वोट नहीं पड़े.
नर्मदा और दूधी नदी के संगम पर बनने वाला यह सुपर कोयला बिजलीघर 2640 मेगावाट बिजली बनाएगा. जिसके लिये 660 मेगावाट की 4 इकाईयां लगाई जाएंगी. इन इकाइयों के लिये तूमड़ा, महेश्वर, संसारखेड़ा, मेहरागांव, झिकौली और निमावर ग्राम पंचायतों के 9 गांवों की उपजाउ जमीन ली जाएगी. इसके अलावा इस बिजलीघर से बरौआ, नोरिया, केंवट जैसे मछुआरा समुदाय के लोग भी प्रभावित होंगे.

इन समुदायों का बरगी बांध बनने से पहले ही डंगरबाड़ी यानी तरबूज-खरबूज की खेती का धंधा चौपट हो गया है. बरगी बांध से समय-असमय पानी छोड़ा जाता है, इस कारण तरबूज-खरबूज की खेती नहीं हो पा रही है. अब इस बिजलीघर के कारण उनका रहा-सहा रोजगार भी हाथ से निकल जायेगा.
तूमड़ा गांव के दयाशंकर खेमरिया कहते हैं “ ये हमारी सबसे अधिक उपजाउ जमीन है, जो फसलों के रूप में सोना उगलती है. हम इसमें सभी फसलें लेते हैं. पहले यहां कपास और मूंगफली की खेती होती थी. आज सोयाबीन, गेहूं, गन्ना सब कुछ होता है. इलाके की तुअर प्रसिद्ध है.”
एनटीपीसी का तर्क है कि गांवों को विस्थापित नहीं किया जाएगा और उन्हें यथावत रहने दिया जाएगा. इसके अलावा एनटीपीसी जनविकास का काम भी करेगी. लेकिन नर्मदा कछार की जमीन में सभी नगदी फसले उपजाने वाले दयाशंकर का सीधा सवाल है कि जब जमीन ही नहीं रहेगी तो हम करेंगे क्या ?
पूर्व सरपंच छत्रपाल विनम्रता के साथ कहते हैं- “हम किसी भी कीमत पर एनटीपीसी का संयंत्र यहां नहीं लगने देंगे. इसका पूरी ताकत से विरोध किया जाएगा.”
नर्मदा पर करीब एक दर्जन बिजलीघर बनने वाले हैं. बड़े-बड़े बांध बनने के बाद नर्मदा पर यह दूसरा सबसे बड़ा संकट है. बरगी बांध, इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर और सरदार सरोवर जैसे बांध बनाए जा चुके हैं. इससे नर्मदा के किनारे बसे गांवों और मंदिरों के रूप में हमारी बरसों पुरानी सभ्यता व संस्कृति खत्म हो रही है. नर्मदा की परिक्रमा की परंपरा बहुत पुरानी है. नर्मदा किनारे कई परकम्मावासी मिल जाएंगे. यहां कई पुरातत्वीय महत्व के स्थल भी हैं. लेकिन बांधों के निर्माण ने इन सबको तहस-नहस कर दिया.
बिजलीघर के विरोध करने के लिए बनी किसान मजदूर संघर्ष समिति, तूमड़ा ने नर्मदा मां से भी अपने ऊपर आए इस संकट में गुहार लगाई है. इस गुहार पर गौर फरमायें- “ हे मां, तेरी असीम कृपा से इस इलाके में जो नेमत बरसती थी, उससे यहां के रहवासियों को वंचित किया जा रहा है. मां ! जिस जमीन को तू हर साल अपने आंचल में समेट कर नया उर्वर जीवन देती रही है, बिजलीघर लग जाने के बाद, तेरी यही नियामत राख के पहाड़ों से बांझ हो जाएगी.”
पिछले साल 9 नवंबर को दिल्ली में मध्यप्रदेश सरकार और एमपी पावर ट्रेडिंग कंपनी के साथ एनटीपीसी ने एमओयू किया था. एमओयू में हालांकि इस बात का जिक्र नहीं था कि एनटीपीसी अपना बिजलीघर कहां लगायेगी, लेकिन राज्य सरकार ने 2500 एकड़ भूमि आवंटित करने की सहमति दे दी. इसके अलावा नर्मदा नदी से 125 घनफुट पानी देने के लिये सरकार ने अपनी हरी झंडी दे दी. मजेदार बात ये है कि कथित तौर पर 1200 मेगावाट बिजली की कमी झेल रहे मध्यप्रदेश को इस बिजलीघर से कितनी बिजली मिलेगी, इसका कहीं अता-पता नहीं है.
बहरहाल एमओयू के बाद से इलाके में बिजलीघर की चर्चा शुरु हुई और शुरु हुआ आशंकाओं का दौर.
करीब 5 हजार आबादी वाले तूमड़ा गांव की दीवारों पर एनटीपीसी के विरोध में नारे लिखे गए हैं. चौराहे पर एकत्र लोगों के बीच दिन भर बिजलीघर ही चर्चा के केन्द्र में रहता है. लोग बेचैन और परेशान हैं. बहसें कर रहे हैं, तर्क दे रहे हैं, आंदोलन कर रहे हैं और आशंकाओं के बीच रात गुजार रहे हैं. सब तरफ अनिश्चय का वातावरण बना हुआ है.
क्या नर्मदा का पानी आचमन करने लायक, नहाने लायक और मवेशियों के पीने लायक भी रह जाएगा ? लाखों किसान व गांववासी तो सीधे उजड़ेंगे ही, इस नदी पर आश्रित करोड़ों लोगों की जिंदगी व रोजी-रोटी भी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी?
दयाशंकर खेमरिया कहते हैं “हमें प्यास लगी है, पानी चाहिए, वे हमें संतरा की गोली देते हैं. स्पष्ट कुछ नहीं कहा जाता, संयंत्र यहीं लगेगा या और कहीं.”
समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सुनील ने कहा कि बरगी बांध बनने से नर्मदा में तरबूज-खरबूज की बाड़ियों का धंधा चौपट हो गया. अब बिजलीघरों की राखड़ और कारखानों के प्रदूषण से मछली खतम हो जाएगी. उन्होंने कहा कि इनसे नदियां, जमीन, जंगल, जैव विविधता नहीं बचेगी. सुनील कहते हैं- “बड़े बांध बनने के कारण नर्मदा पहले से ही तालाब और नाले में बदल गई है, अब वह गटर में तब्दील हो जाएगी.”
करीब 25 सालों से किसान-आदिवासियों के हक और इज्जत की लड़ाई लड़ने वाले सुनील सवाल उठाते हैं- “ क्या नर्मदा की स्थिति यमुना और गंगा जैसी नहीं होगी ? क्या नर्मदा का पानी आचमन करने लायक, नहाने लायक और मवेशियों के पीने लायक भी रह जाएगा ? लाखों किसान व गांववासी तो सीधे उजड़ेंगे ही, इस नदी पर आश्रित करोड़ों लोगों की जिंदगी व रोजी-रोटी भी क्या बरबाद नहीं हो जाएगी? यह कैसा विकास है ?”
इस क्षेत्र में सक्रिय समाजवादी जनपरिषद से जुड़े गोपाल राठी व श्रीगोपाल गांगूडा मानते हैं कि नर्मदा बहुत ही पवित्र नदी है. इससे लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं, इसे प्रदूषित होने से बचाया जाना जरूरी हैं.
पर्यावरणीय मुद्दों पर सतत लेखन से जुड़े पत्रकार भारत डोगरा का कहना है कि इसे ग्लोबल वार्मिग के संदर्भ में भी देखना चाहिए. थर्मल पावर से जिन कार्बन गैसों का उत्सर्जन होगा, उसका असर तापमान पर भी पड़ेगा. यह दुनिया का सबसे चिंता का विषय है. इसलिए हमें ऊर्जा के दूसरे विकल्पों पर विचार करना चाहिए.








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