नक्सली आंदोलन के संस्थापकों में से एक कानू सान्याल का मंगलवार को निधन हो गया. उनका शव हाथीघीसा स्थित उनके घर में रस्सी से लटका हुआ पाया गया. पुलिस
मान कर चल रही है कि पिछले कुछ समय से दो. चारु मजुमदार में उतावलापन था
विभिन्न बीमारियों से परेशान कानू सान्याल
ने उन्होंने आत्महत्या की है.
कानू सान्याल और चारु मजुमदार ने मिल कर बंगाल के जलपाईगुड़ी के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन चलाया था, जिसके बाद वह आंदोलन पूरे देश में नक्सल आंदोलन के नाम से जाना गया.
1929 में दार्जीलिंग के कर्सियांग में जन्में कानू सान्याल अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटे थे. पिता आनंद गोविंद सान्याल कर्सियांग के कोर्ट में पदस्थ थे. कानू सान्याल ने कर्सियांग के ही एमई स्कूल से 1946 में मैट्रिक की अपनी पढ़ाई पूरी की. बाद में इंटर की पढाई के लिए उन्होंने जलपाईगुड़ी कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. उसके बाद उन्हें दार्जीलिंग के ही कलिंगपोंग कोर्ट में राजस्व क्लर्क की नौकरी मिली. लेकिन कुछ ही दिनों बाद बंगाल के मुख्यमंत्री विधान चंद्र राय को काला झंडा दिखाने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में रहते हुए उनकी मुलाकात चारु मजुमदार से हुई. जब कानू सान्याल जेल से बाहर आए तो उन्होंने पूर्णकालिक कार्यकर्ता के बतौर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ली. 1964 में पार्टी टूटने के बाद उन्होंने माकपा के साथ रहना पसंद किया. 1967 में कानू सान्याल ने दार्जिलिंग के नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की.
अपने जीवन के लगभग 14 साल कानू सान्याल ने जेल में गुजारे. इन दिनों वे भाकपा माले के महासचिव के बतौर सक्रिय थे और नक्सलबाड़ी से लगे हुए हाथीघिसा गांव में रह रहे थे. दो साल पहले लकवाग्रस्त होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया था. लेकिन इसके बाद उन्होंने कहीं भी भर्ती होने से इंकार कर दिया था.
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