Tuesday, March 9, 2010

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?




अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,

पलक संपुटों में मदिरा भर

तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?



‘यह अधिकार कहाँ से लाया?’

और न कुछ मैं कहने पाया -

मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?



वह क्षण अमर हुआ जीवन में,

आज राग जो उठता मन में -

यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!

क्षण भर को क्यों प्यार किया था?

No comments:

Post a Comment

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...