Saturday, March 20, 2010

बाबा के सेक्स प्रेम

पिछले कुछ हफ्तों में, बाबाओं के सेक्स स्कैंडलों की अनेक खबरें सामने आईं हैं. यह पहली बार नहीं है कि बाबा, अपने सेक्स प्रेम के चलते चर्चा का विषय बने हों. बाबाओं के महिलाओं के प्रति आकर्षण की कई कथाएं समय-समय पर सामने आतीं रहीं हैं. हाल में सामने आए स्वामी नित्यानंद और इच्छाधारी बाबा भीमानंद के सेक्स स्कैंडलों ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि हमारे देश के बाबा, बिना किसी डर के अपने सेक्स -प्रेम का इज़हार करते रहें हैं.








पिछले चंद वर्षो में बाबाओं के सेक्स स्कैंडलों की कई कथाओं ने मीडिया में सनसनी फैलाई है. एक विदेशी लेखक ने सत्य साईं बाबा के बारे में कई चौंकाने वाली बातें कहीं थीं. गुरमीत राम-रहीम, स्वामी माधवन व कामकोटि शंकराचार्य के आश्रम में हुई कारगुजारियॉ हम सब की जानकारी में हैं.



ऐसा नहीं है कि इस तरह की हरकतों के आरोप केवल हिन्दू धार्मिक व्यक्तित्वों पर लगे हों. सिस्टर जेसेम की “स्टोरी ऑफ ए नन” और कैथोलिक चर्च द्वारा बच्चों का शारीरिक शोषण करने के आरोप में एक पादरी की बर्खास्तगी से यह स्पष्ट है कि हिन्दू से इतर धर्म भी सेक्स के प्रति आकर्षण से मुक्त नहीं हैं. पादरी की बर्खास्तगी इसलिए हुई क्योंकि जर्मनी के कई निवासियों ने यह आरोप लगाया कि जब वे बच्चे थे, तब उस पादरी ने उनका शारीरिक शोषण किया था. ऐसे कई मामले हाल में भी सामने आये हैं.



आरएसएस के प्रचारकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे जीवन भर अविवाहित रहें. संघ के संजय जोशी को उनकी राजनैतिक जिम्मेदारियों से इसलिए मुक्त किया गया था क्योंकि उनके कथित सेक्स-प्रेम को उजागर करने वाली एक सीडी सार्वजनिक हो गई थी.



इन सब मामलों की पृष्ठभूमि अलग-अलग हैं. कैथोलिक धर्म में, पादरियों व ननो का अविवाहित रहना एक नियम है. इस धर्म में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनने धार्मिक संगठनों को शर्मिंदा किया है.



जहां तक हिन्दू बाबाओं का प्रश्न है, वे अपने अलग-अलग साम्राज्य चलाते हैं. वे किसी धार्मिक संस्थागत व्यवस्था के हिस्से नहीं होते. इस कारण, दोनों की तुलना अनुचित होगी परंतु दोनों मामलों में जो समानता है, वह यह है कि जिन लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे ब्रम्हचर्य धर्म का पालन करेंगे, वे स्वयं की वासनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाते.



बाबाओं और स्वामियों के मामलों से यह साफ है कि वे अपनी “आध्यात्मिक उपलब्धियों” का दुरूपयोग, शारीरिक सुख प्राप्त करने के लिए करते हैं. धार्मिकता का चोला पहनकर वे सत्ताधारियों के सहयोग से “सेक्स रैकेट” चलाने से भी गुरेज नहीं करते. यह धार्मिक आस्था का घोर दुरूपयोग है. ये बाबा जानते-बूझते, ऐसी परिस्थितियॉ उत्पन्न करते हैं, जिनके चलते इनकी महिला अनुयायी इनके जाल में फॅस जायें और वे उनका शारीरिक शोषण कर सकें. यह न केवल कानून की दृष्टि में अपराध हैं वरन् सामाजिक स्तर पर भी धार्मिक आस्था का अक्षम्य दुरूपयोग है.



ब्रम्हचर्य व्रत का पालन, कई धर्मो में, धार्मिक व्यक्तित्वों के लिए आवश्यक है. इसके पीछे पवित्र कारण हैं. त्याग की भावना और शारीरिक सुख की इच्छा पर विजय प्राप्त करना, आध्यात्मिक ऊँचाई प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है. जहां तक ब्रम्हचर्य व्रत के पालन का संबंध है, भारतीय बाबाओं का अलग-अलग रिकार्ड रहा है.



प्राचीन भारत में ऐसे लोग भी थे, जो सब कुछ त्याग देते थे और ऐसे भी, जो गृहस्थ धर्म का पालन करते थे. पतंजलि ने लिखा है, “स्वांग जुगुप्सा, पराई असानसर्गह” अर्थात आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि और हृदय के अंतिम सत्य को प्राप्त करने के साथ, शरीर के प्रति उपेक्षा भाव जागृत होता है. यही कारण है कि ब्रम्हचर्य को सन्यास की ओर ले जाने वाला मार्ग कहा गया. और यही कारण है कि ब्रम्हचारियों का समाज में सम्मान था.



आदि शंकराचार्य जिस दौर में हिन्दू धर्म के बौद्ध धर्म के विरूद्ध संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे, उस समय उन्होंने ब्रम्हचर्य को अपनी शिक्षाओं में अत्यंत उच्च स्थान दिया था. शारीरिक सुखों का त्याग-जिसमें ब्रम्हचर्य शामिल था-की अवधारणा उन्होंने बौद्ध धर्म से ली थी. आज की दुनिया में, बौद्ध भिक्षुकों, कैथोलिक पादरियों और हिन्दू धर्म के कुछ पंथों में ही ब्रम्हचर्य को महत्व दिया जाता है. यह धार्मिक परंपरा का हिस्सा है. इससे बिलकुल अलग कारणों से, आरएसएस जैसे कुछ राजनैतिक संगठनों ने ब्रम्हचर्य व्रत के पालन को अपने प्रचारकों के लिए अनिवार्य बनाया है.



पतंजलि के तर्क को ही श्री श्री रविशंकर दोहराते हैं. उनका कहना है कि जैसे-जैसे कोई व्यक्ति आध्यात्म की नई ऊँचाईयों को छूता है, उसके लिए शरीर का महत्व कम होता जाता है और सेक्स की भूख लगभग मर जाती है. अन्य बाबाओं के विपरीत तर्क हैं. इनमें सबसे प्रमुख हैं ओशो यानी भगवान रजनीश. उनका तर्क है कि सेक्स की इच्छा पर विजय के लिए, सेक्स के अनुभव से गुजरना जरूरी है. वे यह कहते भी थे और उनकी पुस्तक, “संभोग से समाधि तक” का यही सार है.



आज की वैश्विक दुनिया में हर व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है. उपभोक्तावाद तेजी से बढ़ा है, गला-काट प्रतिस्पर्धा है और पैसा, व्यक्ति की सफलता को नापने का मानक बन गया है.





यह अर्ध-दार्शनिक शाब्दिक मायाजाल अपनी जगह है परंतु शारीरिक मजबूरियों ने अनेकों बार ब्रम्हचारियों को पराजित किया है और धार्मिक व्यक्तित्वों व संस्थाओं के सेक्स स्कैडलों के इतने मामले सामने आ चुके हैं कि ऐसा लगता है कि कामदेव, हमारे बाबाओं के पूज्यों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. कभी वे बच्चों का शारीरिक शोषण करते हैं तो कभी अपनी महिला भक्तों को अपने “आध्यात्मिक” जाल में फंसा लेते हैं.



पिछले कुछ दशकों से ये मामले बड़ी संख्या में इसलिए सामने आ रहे हैं क्योंकि हमारे देश में बाबा, कुकुरमुत्तों की तरह ऊग आए हैं. बाबाओं की बाढ़ के पीछे कई कारण हैं. आज की वैश्विक दुनिया में हर व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है. उपभोक्तावाद तेजी से बढ़ा है, गला-काट प्रतिस्पर्धा है और पैसा, व्यक्ति की सफलता को नापने का मानक बन गया है.



आज के बाबाओं को कई श्रेणियों में बांटा जा सकता है. इनकी व्यवसायिक निपुणता भी अलग-अलग स्तर की है. सब के आध्यात्मिकता के अपने ब्रांड हैं. उन्होंने बड़ी-बड़ी दुकानें खोल रखीं हैं, जो तेजी से फैलते बाजार में सफलतापूर्वक अपने ब्रांड़ की आध्यामिकता की मार्केटिंग कर रही हैं. उनके ग्राहक, मुख्यतः मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग के हैं.



धार्मिकता तेजी से बढ़ रही है और इसमें उद्योग जगत और राज्य का कम योगदान नहीं है. भारत में, उद्योग जगत की सहायता से हिन्दूकरण का अभियान चल रहा है. धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है. उच्च शिक्षा को निजी क्षेत्र के हाथों में सौंप दिया गया है. इनमें से कुछ ने धार्मिक ट्रस्ट बना लिए है जिनके जरिए वे “नैतिक शिक्षा” के नाम पर छद्म धार्मिकता की मीठी गोली बाँट रहे हैं. सरकारें, गुरूओं और बाबाओं के आश्रमों के लिए मुफ्त के भाव जमीनें बाँट रहीं हैं.



भारत और दुनिया के दूसरे हिस्सों में धार्मिक दक्षिणपंथियों का जोर बढ़ रहा है. भारत में कई संगठन समाज के हिन्दूकरण का खेल खुलकर खेल रहे है. स्वामी और बाबा इस काम में एजेन्टों की तरह काम कर रहे हैं. नित्यानंद और इच्छाधारी बाबा तो इस खतरनाक बीमारी के लक्षण मात्र हैं.
                                                                                                              -राम पुनियानी

No comments:

Post a Comment

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...