Tuesday, March 9, 2010

इन आंखों से दिन रात बरसात होगी / बशीर बद्र

इन आँखों से दिन-रात बरसात होगी

अगर ज़िंदगी सर्फ़-ए-जज़्बात होगी
मुसाफ़िर हो तुम भी, मुसाफ़िर हैं हम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
सदाओं को अल्फाज़ मिलने न पायें
न बादल घिरेंगे न बरसात होगी
चराग़ों को आँखों में महफूज़ रखना
बड़ी दूर तक रात ही रात होगी
अज़ल-ता-अब्द तक सफ़र ही सफ़र है
कहीं सुबह होगी कहीं रात होगी

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