Sunday, March 21, 2010

आधुनिकता की दौड़ में मोबाइल कॉलर ट्यून

आधुनिकता की दौड़ में मोबाइल फोन को सबसे आगे कहा जाए तो गलत न होगा। एक दशक पहले तक यह जादू कुछ लोगों के हाथ तक ही सीमित था, मगर आज की तारीख में यह सभी वर्गो व आयवर्गो तक अपनी पहुंच बना चुका है। मोबाइल की किस्मों के अलावा इसके कॉलर ट्यून को लेकर इन दिनों होड़ है। सच कहें तो ये कॉलर ट्यून उपभोक्ताओं की रुचि, उनके मूड और उनके व्यक्तित्व के दर्पण का रूप ले चुके हैं। घर के बाहर चारों ओर बिखरी तमाम रंगीनियों और चकाचौंध के बाद भी कॉलर ट्यून के मामले में धार्मिक और सूफियाना ट्यून की ओर बढ़ती रुझान सबको दंग किये हुए है। बहरहाल, बाजारीकरण के दौर में लोगों के इन जज्बातों की भी जोरदार मार्केटिंग हो रही है। मोबाइल कंपनियों ने उपभोक्ताओं की नब्ज को समझते हुए धार्मिक ट्यून्स की बाढ़ झोंक दी है। हिंदू धर्मावलंबियों के लिए अगर वेद पुराणों के मंत्र और ऋचाओं के साथ प्रार्थनाओं की पूरी सिरीज उपलब्ध है तो मुस्लिम बंधुओं के लिए नातिया कलामों की लंबी फेहरिश्त हाजिर है। सिख समुदाय के लिए अगर गुरुवाणी के सबद उपलब्ध हैं तो क्रिसमस के लिए कैरोल गीतों का तोहफा लांच हो चुका है। समय-समय पर लोकप्रियता के हिसाब से झटपट आइटम भी यदाकदा भुना लिये जा रहे हैं। मसलन, जब वंदे मातरम की चर्चा हुई तो काफी लोगों ने इस ट्यून को पसंद किया। मोबाइल पर गायत्री मंत्र सुनानेवालों की कमी नहीं है। गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. रोहित गुप्ता का कहना है कि कम से कम जो शख्स फोन करता है उसको ऐसे संवाद से तृप्ति मिलती है। ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो, देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात। मनीष तुलस्यान ने कहा कि धार्मिक कॉलर ट्यून से कम से कम ये लगता है कि इसी बहाने दूसरों को सुनाने से शायद पुण्य की प्राप्ति हो। मुकेश अग्रवाल ने कहा कि गणेश स्तुति ट्यून से मन को संतुष्टि मिलती है। वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ: निर्विघ्नम् कुरु मे देव..जैसे ट्यून मन को शांति देते हैं। मदरसा मदीनतुल उलूम के प्रधानाचार्य हाजी दीवान खां जमा ने नात-ए-पाक के इस बोल को लगाया है- या सय्यदी हबीबी खैरुल अनाम आका, अपने सलामियो का ले लो सलाम आका, आए हैं हाथ खाली भर दो..कहा कि कई बार ऐसा होता है कि फोन करने वाले कहते हैं कि सिर्फ नात-ए-पाक सुनने के लिए फोन किया था। हाजी मोहम्मद जफर ने लगाया है- मुस्तफा जाने रहमत पे लाखों सलाम, शम्मे बज्में हिदायत पे लाखों सलाम..। फरीद अहमद अंसारी ने हम्द के अशआर लगाए हैं-गुनाहों की आदत छुड़ा मेरे मौला, मुझे नेक इंसा बना मेरे मौला। शेख मोहम्मद खुर्शीद का मोबाइल अल्लाहू-अल्लाहू अल्लाह, कैसी है फूलों की रिदा..हाजी मोहम्मद एखलाक ने अजान की सदा लगवा रखी है। इसके अलावा लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी..साथ ही कुरानपाक की सुरेह, हनुमान चालीसा, श्याम चालीसा आदि की सदा आजकल अधिकतर कानों में गूंज रही है।

1 comment:

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...