वे घंटों का कत्ल कर चुके हैं और तारीखों को भूल चुके हैं...
जंगल जो इतना घना है कि इतिहास ने शायद ही कभी इसमें रास्ता खोजा है.
सुंदरवनः यह उन्हें लील लेता है.
' द मिडनाइट्स चिल्ड्रेन ' के नाम से सलीम सिनाई की कहानी लिख कर 1981 में बुकर पुरस्कार पाने वाले सलमान रश्दी अब शायद सुंदरवन का ऐसा उल्लेख नहीं कर पायें. कल तक दुनिया भर में अपने मैनग्रोव फारेस्ट के लिये मशहूर सुंदरवन को धरती का तापमान निगल रहा है. पिछले तीन दशकों में सुंदरबन की नदियों और बैकवाटर का तापमान प्रति दशक 0.5 डिग्री सेंटीग्रेड की दर से बढ़ रहा है. तापमान बढऩे की यह दर औसत तापमान वृद्धि से आठ गुना ज्यादा है. धरती और जंगल के साथ-साथ पानी का तापमान बढ़ रहा है, बाघों और मनुष्य के बीच टकराव बढ़ रहा है और बढ़ रहा है सुंदरवन के हमेशा-हमेशा के लिये खत्म हो जाने का खतरा.
पानी का तापमान बढऩे से सुंदरवन के पानी में घुलनशील ओ2 की मात्रा बढ़ रही है. मछलियां और अन्य पशु पानी में बढ़ते ऑक्सीजन की मात्रा को बर्दाश्त नहीं कर सकते. इससे पशुओं की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और एक तरह से इनके नष्ट होने की आशंका गहराने लगी है.
उजड़ रहा है मैनग्रोव जंगल
सुंदरबन को 'कुबेर का खजाना’ कह सकते हैं मगर यहां के बाशिंदे बेहद गरीब है. हर साल इको-टूरिज्म का मजा लूटने हजारों देशी-विदेशी पर्यटक सुंदरबन आते हैं. सुंदरबन में हजारों लोग मछली मारने के धंधे से जुड़े हैं और बड़े पैमाने पर मछली का कारोबार करते हैं. सुंदरबन के जंगलों से स्थानीय निवासी लगभग 10 हजार टन शहद निकालते हैं. इसके अलावा स्थानीय लोग अन्य वनोपज की मदद से भी अपना जीवन यापन करते हैं. इसके अलावा यहां पेड़-पौधों और वन्यजीवों की हजारों प्रजातियां पाई जाती है.
सुंदरवान का मैनग्रोव जंगल तेजी से सिकुड़ रहा है. सुंदरवन में पेड़ पौधों की कटाई का पुराना इतिहास रहा है. एक अनुमान के अनुसार हर साल दो लाख टन लकड़ी सुंदरवन से कोलकाता और 24 परगना जाता है. ये और बात है कि यहां संरक्षित वन होने की वजह से पेड़ो की कटाई अवैध है. सुंदरवन के विशेषज्ञ कुमुद रंजन नास्कर के अनुसार “ आबादी बसाने के नाम पर पिछले एक सौ साल में 2000 वर्ग किलोमीटर जंगल का सफाया हुआ है. सुंदरवन के लगभग 54 द्वीपो पर नहीं के बराबर पेड़-पौधे हैं. ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों का काटा जाना भी संदरवन के हक में नहीं है.”
पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच तकरीकन 300 कि.मी. तक सैकड़ों छोटे बड़े द्वीप समूहों को समेटे, पसरा हुआ है सुंदरवन. सुंदरवन, जिसे हम सब विश्व के विशालतम-डेलटा या सघनतम वनों में से एक के तौर पर जानते है. ये तब बसा जब बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले गंगा, ब्राह्मपुत्र और मेघना नदियों ने अपना पलद्दर जमा किया. वैसे, अब भी यह क्षेत्र नदी के बहाव को झेलता है, नदी के चौड़े मुहाने देखता है नदियों अपना खारा पानी यहां तक लेकर आती है- तलद्दर अब भी जमा होता है, छोटे-छोटे द्वीप अब भी बन रहे हैं जिन्हें पानी की लहरों का करंट अक्सर जुदा कर जाता है.
घटते द्वीप
सुंदरवन का वह भाग जो पश्चिम बंगाल में है, भारत का 60 प्रतिशत वन प्रदेश कहलाता है. इसमें 102 द्वीप है, जिनमें से 54 में लोगों का वास भी है. इन 54 द्वीपों में ज्यादातर 1700 ई.पू. में अंग्रेजों द्वारा वन काटकर बसाए गए ताकि वहां से भी राजस्व वसूला जा सके. अब दो सौ साल से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद जंगलों का नामोनिशान उन 54 द्वीपों से तकरीबन मिट चुका है. शिकार, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, इन सबने मिलकर इस इलाके को तूफान और चक्रवात संवेदी बना डाला है.
हालांकि मानव सघनता वाले उन 54 द्वीपों पर अब जंगल नहीं, पर सुंदरवन के शेष 10,000 स्क्वेयर कि.मी. क्षेत्र (जिसमें से 40 प्रतिशत भारत का हिस्सा है) पर सघन वन और वन्यजीव अब भी पाए जाते है. ये वो इलाका है, जो कई-कई दिनों तक पानी में डूबा रहता है. इन दुर्गम वनों में तकरीबन 100 जैव प्रजातियों का निवास है. इनमें रॉयल बंगाल टाइगर, जंगली मगरमच्छ, शार्क, स्पॉटेड डीयर, वाइल्ड वॉट और कई अन्य सांपों और पक्षियों की प्रजातियां शामिल हैं. इस इलाके के वन एक तरह से बंगाल के तटीय इलाकों के रक्षक हैं, जो मृदा को तो बांधते ही है, साथ ही विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से तटीय क्षेत्रों की रक्षा भी करते हैं.
वैसे तो सुंदरवन की पहचान वहां रह रहे रॉयल बंगाल टाइगर्स से है पर भारत के वन्य जीव संरक्षण विभाग का ध्यान पहली बार 1960 में इस तरफ तब गया जब यहां रह रही बड़ी बिल्लियों की संख्या में तेजी से गिरावट देखी गई. जब तक वन्य जीव संरक्षण आंदोलन ने गति पकड़ी तब तक वॉटरफेलो, गेंडों की प्रजातियां और कई पौधों की प्रजातियां लुप्त हो चुकी थी.
1973 में भारत सरकार ने 2,585 स्कवेयर किमी. के सुदंरवन क्षेत्र को प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत संक्षिप्त घोषित किया. 1985 में इस क्षेत्र को यूनेस्को के वर्ल्ड हैरीटेज के अंतर्गत शामिल किया गया और 1980 में तकरीबन 9, 360 स्कवेयर किमी. क्षेत्र को वायोस्फीयर रिजर्व घोषित किया गया.
इन सभी प्रावधानों ने जहां एक और सुंदरवन के रक्षक और संरक्षण में मदद की, वहीं यह जनसामान्य के बीच एक रहस्यमयी जंगलों के रूप में स्थापित हुआ.
खतरा टला नहीं है
सुंदरवन तकरीबन 3.9 मिलियन लोगों का घर है, जहां बाढ और चक्रवात संवेदी इलाकों में मछली पालन और कृषि के जरिए लोग अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं. प्राकृतिक आपदाओं को ध्यान में रखते हुए लोग यहां बिखरे हुए नहीं बल्कि करीब-करीब साथ-साथ रह रहे है. तब ही यहां की आबादी 1200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है. करीब 45000 स्केवयर कि.मी. पर रह रहे ये लोग सिर्फ 280 कि.मी. की सड़कों और 42 स्कवेयर कि.मी. तक रेल से जुड़े हुए है. रिक्शा यहां आवाजाही का मुख्य साधन है. आधारभूत सुविधाओं और अधोसंरचना की कमी ने इसे देश के सबसे गरीब इलाकों में शामिल कर दिया है जहां कि प्रति व्यक्ति आय सालाना 10,000 रुपये या उससे भी कम है.
सुंदरवन में औसत तापमान
1980- 31.4
1985- 31.6
1990- 31.5
1995- 31.8
2000- 32.0
2005- 32.2
2007- 32.5
सुंदरबन के बारे में बात करते हुए जादवपुर यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ ईसियनों ग्राफी स्टडीज के निदेशक सुगाता हाजरा एक बेहद दिलचस्प बयान देते है. “ सुंदरवन अपनी तरह का वो विशिष्ट इलाका है जहां देश की सबसे ज्यादा सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर जनता, सबसे अधिक कमजोर और संवेदनशील जमीन पर रह रही है. पिछले 20 साल में समुंदर ने दो द्वीपों को अपने में जब्त कर लिया.”
'लोहाछाड़ा' और 'सुपारीभंगा' इन दो द्वीपों के बाद अब वैज्ञानिकों की चेतावनी मानें तो अगला नंबर 'घोराभारा' और 'सागर' का है. श्री हाजरा और उनकी टीम ने कई वर्षों तक इस क्षेत्र का अध्ययन करने के बाद अपनी विश्लेषण रिपोर्ट जारी की, जिसमें की गई टिप्पणियां और जिसमें दिए गए तथ्य चौंका देने वाले है. रिपोर्ट कहती है कि समुद्र स्तर में वार्षिक रूप से 3.3 मिली मीटर की वृध्दि है जिसपर दक्षिणी तटों पर बसे द्वीप समुद्र में समा रहे है. 3.3 मि.मी. की वृध्दि औसत 200 मि.मीटर से कही अधिक है, जिसका कारण तीव्र मृदा क्षरण को माना जा रहा है.
इसके अलावा समुद्र जल स्तर के बढ़ने के कई अन्य कारण भी है.
बढ़ता क्षरण
श्री हाजरा के मुताबिक सबसे महत्वपूर्ण कारण तो वन्य क्षेत्र का कम होना है, जिसके कारण मिट्टी को बांधकर रख पाना मुश्किल हो रहा है. 1885 में सुंदरवन का वन क्षेत्र जहां 20 हजार स्केवेयर कि.मी. था वहीं अब ये तकरीबन 9,600 स्क्वेयर कि.मी. ही बचा है जिनमें से घने जंगल सिर्फ 4200 स्कवेयर कि.मी. में ही देखे जा सकते है.
दूसरा महत्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृध्दि है. आजादी के बाद से अब तक सुंदरवन ने 234 प्रतिशत की जनसंख्या वृध्दि देखी है. इस गति से बढ़ती जनसंख्या अगर सन 2020 तक 5 मिलियन का आंकड़ा पार कर ले तो कोई आश्चर्य की बात नहीं. मिट्टी, पत्थर, गाद जो पहले नदियां अपने पानी के साथ बहा कर ले आया करती थी, वो भी अब बांधों के आसपास ही रूक जाया करता है.
ये सभी कारण सुंदरवन को अतिसंवेदनशील बना देते है. 15 साल तक लगातार श्री हाजरा की टीम ने लहरों और उनकी स्वभाव को समझा और मापा. इस सबके बाद जो सामने आया, वो बहुत खौफनाक था. सन 2050 तक सागर द्वीप के आसपास समुद्र जल स्तर तकरीबन 50 से मी की गति से बढ़ेगा, साथ ही इस ही अनुपात में क्षरण भी बढ़ेगा. ऐसे में दक्षिण तटीय बाहर द्वीपों की पहचान कर ली गई है जिनके डूब जाने की संभावना है.
राज्य सिंचाई और वन विभाग के साथ-साथ स्थानीय प्रशासन द्वीप मुहैया कराए गए आंकड़े कहते है कि पिछले 20 सालों में करीब 485 जिंदगियों और 130.6 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो चुका है. अगर श्री हाजरा की टीम द्वारा जताई गई संभावनाएं सत्य साबित हुई तो आनेवाले समय में ये नुकसान कई गुना बढ़ेगा.
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