तुम अगर नहीं आयीं, गीत गा ना पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा ना पाऊँगा
तान भावना की है, शब्द-शब्द दर्पण है,
बाँसुरी चली आओ, होट का निमन्त्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है
दूरियाँ समझती हैं दर्द कैसे सहना है?
आँख लाख चाहे पर होठ को ना कहना है
औषधी चली आओ, चोट का निमन्त्रण है,
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है
तुम अलग हुयीं मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक़्त की सजाओं ने
रात की उदासी को, आँसुओं ने झेला है,
कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला है
कंचनी कसौटी को खोट ना निमन्त्रण है
बाँसुरी चली आओ होठ का निमन्त्रण है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी
जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...
-
वह कौन रोता है वहाँ- इतिहास के अध्याय पर, जिसमें लिखा है, नौजवानों के लहु का मोल है प्रत्यय किसी बूढे, कुटिल नीतिज्ञ के व्याहार का; जिसक...
-
जयपुर. पूर्वांचल की तासीर से जो नावाकिफ हैं, उन्हें यह घटना नागवार गुजरेगी लेकिन यहां खून से ही चिराग जलते हैं. जलवा, जलाल का ख्याल तो अब अ...
-
विगत दो दिनों से जिसने भी भारतीय टीवी चैनलों (हिन्दी) को देखा होगा, उसने लगभग प्रत्येक चैनल पर स्वर्गीय प्रमोद महाजन के "सपूत"(?...
No comments:
Post a Comment