Saturday, March 13, 2010

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं


तुझे ए ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं

मेरी नजरें भी ऐसे कातिलों का जान ओ ईमान हैं

निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं

तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में

हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं

खुद अपना फ़ैसला भी इश्क में काफ़ी नहीं होता

उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं

जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का

इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं

तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में

हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं
रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आखिर है

तेरा ऎ मौत! हम ये दूसरा एअहसान लेते हैं

हमारी हर नजर तुझसे नयी सौगन्ध खाती है

तो तेरी हर नजर से हम नया पैगाम लेते हैं

ज़माना वारदात-ए-क़्ल्ब सुनने को तरसता है

इसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं

'फ़िराक' अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर

कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं

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