Tuesday, March 9, 2010

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है / निदा फ़ाज़ली

जीवन क्या है चलता फिरता एक खिलौना है


दो आँखों में एक से हँसना एक से रोना है

जो जी चाहे वो मिल जाये कब ऐसा होता है

हर जीवन जीवन जीने का समझौता है

अब तक जो होता आया है वो ही होना है

रात अँधेरी भोर सुहानी यही ज़माना है

हर चादर में दुख का ताना सुख का बाना है

आती साँस को पाना जाती साँस को खोना है

No comments:

Post a Comment

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी

जब विद्यासागर जी ने चप्पल फेंकी फिर एक चप्पल चली। रोज ही कहीं ना कहीं यह पदत्राण थलचर हाथों में आ कर नभचर बन अपने गंत्वय की ओर जाने क...