Monday, March 8, 2010

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये / कुमार विश्वास

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये ,


ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये ,



घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले ,

अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले ,



लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये ,

भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये ,



सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में ,

नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे ,



अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...



लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही हीं ,

कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं ,



वो लडाई को भले आर पार ले जाये ,

लोहा ले जाये वो लोहे की धार ले जाये ,

जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी

उस अदालत में हमें बार बार ले जाये



हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब

हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे

अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...

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