Sunday, March 21, 2010

यही दुनिया है तो फिर ऐसी यह दुनिया क्यों है,

कोई यह कैसे बताए कि वह तन्हा क्यों है,
वह जो अपना था वही और किसी का क्यों है,
यही दुनिया है तो फिर ऐसी यह दुनिया क्यों है,
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यों है।

एक ज़रा हाथ बढ़ा दे तो पकड़ लें दामन,
उसके सीने में समा जाए हमारी धड़कन,
इतनी क़ुर्बत है तो फिर फ़ासला इतना क्यों है।

दिल-ए-बरबाद से निकला नहीं अब तक कोई,
एक लुटे घर पे दिया करता है दस्तक कोई,
आस जो टूट गई फिर से बंधाता क्यों है।

तुम मसर्रत का कहो या इसे ग़म का रिश्ता,
कहते हैं प्यार का रिश्ता है जनम का रिश्ता,
है जनम का जो यह रिश्ता तो बदलता क्यों है।

'अर्थ' महेश भट्ट निर्देशित फ़िल्म थी अपनी आत्मकथा पर आधारित इस फ़िल्म की कहानी लिखी थी ख़ुद महेश भट्ट ने (उनके परवीन बाबी के साथ अविवाहिक संबंध को लेकर)। इस फ़िल्म को बहुत सारे पुरस्कार मिले। फ़िल्मफ़ेयर के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (शबाना आज़्मी), सर्बश्रेष्ठ स्कीनप्ले (महेश भट्ट) और सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री (रोहिणी हत्तंगड़ी)। शबाना आज़्मी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार (सिल्वर लोटस) भी मिला था इसी फ़िल्म के लिए। इस फ़िल्म का साउंडट्रैक भी कमाल का है जिसमें आवाज़ें हैं ग़ज़ल गायकी के दो सिद्धहस्थ फ़नकारों के - जगजीत सिंह और चित्रा सिंह। "झुकी झुकी सी नज़र", "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो", "तेरे ख़ुशबू में बसे", "तू नहीं तो ज़िंदगी में" और "कोई यह कैसे बताए" जैसे गीतों/ग़ज़लों ने एक अलग ही समा बांध दिया था। और क्योंकि उस दौर में ग़ज़लों का भी ख़ूब शबाब चढ़ा हुआ था, इस वजह से ग़ज़लों के अंदाज़ के इन गीतों ने ख़ूब वाह वाही बटोरी। कमाल की नज़्म है जिसे लिखा है कैफ़ी आज़्मी साहब ने। कुलदीप सिंह ने फ़िल्म 'अर्थ' में संगीत दिया था। कुलदीप सिंह ग़ैर फ़िल्मी ग़ज़लों में संगीत देने के लिए बेहतर जाने जाते हैं, पर कुछ फ़िल्मों में भी उन्होने यादगार संगीत दिया है और 'अर्थ' उनके संगीत से सजा एक ऐसी ही फ़िल्म है।

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