Sunday, March 21, 2010
मायावती के राज में दलितों, आदिवासियों पर दमन
पहली तस्वीर नोटों में ढकी मायावती की हैं। बाकी दोनों तस्वीरें जख्मी आदिवासी महिला लालती की हैं। उन्हें ये जख़्म किसी और ने नहीं बल्कि वनकर्मियों ने दिए हैं। लालती का गांव मगरदहा, उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में पड़ता है। बीते साल मगरहदा गांव के सभी लोगों को वन विभाग उजाड़ चुका था। कुछ दिन पहले उन्होंने दोबारा बसने की कोशिश की तो उनका ये हाल कर दिया गया। वनकर्मियों ने निहत्थे आदिवासियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। और सबक सिखाने के इरादे से सैकड़ों लोगों के बीच लालती के गुप्तांगों में लाठी डालने की कोशिश की।
पुलिस की इस बर्बर कार्रवाई में रामनरेश, बुद्धिनारायण और श्यामलाल बुरी तरह घायल हुए हैं। बुद्धिनारायण का पैर लाठियों से मार-मार कर तोड़ डाला गया। कुछ अरसे पहले तक जो गांव आबाद था अब वहां चारों और शमशान सी ख़ामोशी है।
मगरदहा गांव सोनभद्र के कोन थाना क्षेत्र में पड़ता है। यहां आदिवासी दादा-परदादा के जमाने से रह रहे थे। पिछले साल अगस्त में पुलिस और वन विभाग ने संयुक्त कार्यवाही कर उन सभी को घरों से खदेड़ दिया। उनकी झोपड़ियों में आग लगा दी। उससे पहले उनके घरों का सामान भी लूट लिया। जब आदिवासियों ने इसका विरोध किया तो उनके खिलाफ फर्जी मुक़दमे दर्ज किए गए। तरह-तरह के जुल्म दिए गए।
वन विभाग और पुलिस की इस बर्बर कार्रवाई के बाद आदिवासी परिवार आठ महीने तक इधर-उधर भटकते रहे। फिर उन्होंने संघर्ष का फैसला किया। 30 नवम्बर को लगभग चार हजार लोगों ने इसी मुद्दे पर कोन थाने का घेराव किया। और अपनी ज़मीन पर दोबारा बसने का फैसला किया। उसी फैसले के तहत करीब एक सप्ताह पूर्व ये आदिवासी अपने गांव लौट आये और अपनी झोपड़ियां फिर से बनाने लगे।
मंगलवार की शाम ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी आर .के चौरसिया ने आदिवासियों द्वारा फिर से झोपड़ियां बनाये जाने की खबर मिलते ही सैकड़ों की संख्या में वन सुरक्षा बल की टीम वहां भेज दी गयी। वन कर्मियों ने वहां पहुंचते ही निहत्थे आदिवासियों की पिटाई शुरू कर दी। पुरुषों को लाठियों से पीट लहुलूहान कर दिया। महिलाओं को बाल पकड़ कर घसीटा। मौके पर मौजूद गांव के बंशी ने बिलखते हुए बताया कि मां-बाप की पिटाई देख कर निरीह बच्चे चीत्कार रहे थे, लेकिन वनकर्मियों को कोई दया नहीं आई। यही नहीं, आदिवासियों को बुरी तरह से घायल करने के बाद उनका मेडिकल जांच भी नहीं कराया गया। उन्हें तड़पता हुआ छोड़ दिया गया।
इस पूरे मामले पर प्रभागीय वनाधिकारी का कहना था कि वो जंगल भूमि पर जबरन कब्ज़ा कर रहे थे। उनके पास वन अधिकार को लेकर कोई कागज़ नहीं है। वहीं जिलाधिकारी सोनभद्र पंधारी यादव का कहना था कि वो झारखंड और बिहार के आदिवासी हैं। उनके खिलाफ न्यायसंगत कार्यवाही की गयी है।
वन प्रशासन की क्रूर कार्रवाई से इलाके आदिवासी भड़के हुए हैं। सोनभद्र के हजारों आदिवासियों ने जिलाधिकारी कार्यालय का घेराव किया। उधर अपनी पूंछ बचाने में जुटे वन विभाग ने सैकड़ों लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर लिया है। कुछ लोगों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया गया है। जिन लोगों के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज हुए हैं उनमें कई घायल भी शामिल हैं। कैमूर क्षेत्र महिला मजदूर किसान संघर्ष समिति ने मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव’गृह” को पत्र लिखकर इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
-आवेश तिवारी
इस मुद्दे पर राष्ट्रीय वन श्रमजीवी मंच के संयोजक अशोक चौधरी ने कहा की उत्तर प्रदेश में वनाधिकार कानून के क्रियान्वन को लेकर प्रदेश सरकार गंभीर नहीं है ,इस पूरे मामले में हम राजनैतिक और कानूनी दोनों तरह की लड़ाई लड़ेंगे। सोनभद्र नक्सल प्रभावित इलाका है। ऐसे में वन विभाग और पुलिस-प्रशासन की ऐसी वहशी हरकतों से नक्सलवाद पर लगाम कैसे लगेगी यह सोचने लायक सवाल है।
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