Tuesday, March 9, 2010

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं / निदा फ़ाज़ली

कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं


हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं

यूँ, हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों

रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत

धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में

बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं

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