नेपाल में सफेद कारोबार की आड़ में काला धंधा करने वाले बदनाम लोगों की जान के लाले पड़े तो सटीक निशाना साधने वालों की कीमत बढ़ गयी। दिलचस्प यह कि शूटरों की बोली लग रही है और सुपारी की जगह बाकायदा उनकी पगार तय की जा रही है। इस बदलाव से नेपाल में शरण लेने वाले भारत के भगोड़े अपराधियों की लाटरी लग गयी है।
नेपाल में हाल-फिलहाल दागी पृष्ठभूमि के कई नामचीन मारे गये। माजिद मनिहार, परवेज टाण्डा, जमीम शाह, अरुण सिंघानियां जैसे लोगों की हत्या के बाद नेपाल की काली दुनिया में खौफ पैदा हो गया। सबने अपने लिए सुरक्षाकर्मियों की तलाश शुरू कर दी। सुरक्षा के लिए प्राथमिकता में भारतीय भगोड़े हैं। वजह यह है कि नेपाल में हाल फिलहाल जितने लोग मारे गये उनकी हत्या के पीछे भारतीय अपराधियों का ही नाम आया। इसके पीछे तर्क है कि सुरक्षा में भारतीय अपराधी रहेंगे तो न केवल वे सामने वाले दुश्मन की पहचान कर सकेंगे बल्कि जवाब भी देने में सक्षम होंगे।
शूटरों का लाभ यह कि मोटी पगार के साथ नेपाल में पनाह मिलेगी और समय पर अपने मुल्क में वापसी भी हो सकेगी। दो पुलिसकर्मियों की हत्या करके भागे हुये नीरज के बारे में एसटीएफ का अनुमान है कि वह इसी सुविधा के चलते नेपाल चला गया है। बताते हैं कि 1995 में वर्चस्व की लड़ाई में मारे गये ब्लाक प्रमुख सुरेन्द्र सिंह के अपराधी बेटे सुधीर सिंह ने नेपाल में अपने पिता के हत्यारे कुख्यात माफिया परवेज टाण्डा की हत्या में सक्रिय भूमिका निभायी। इसके बाद वहां उसका प्रभाव बढ़ गया। उसकी संस्तुति पर अपराधियों को नेपाल में काम मिलने लगा है। कभी मिर्जा के समानांतर वाहन चोरी के एक धंधेबाज की जान पर बन आयी तो उसने भी फरवरी माह में पूर्वी उत्त्तर प्रदेश के दो शूटरों को अपने यहां पगार पर रख लिया।
... पनाह के लिए कीमत चुकाते थे भगोड़े
भारतीय भगोड़े नेपाल में पनाह लेने की कीमत चुकाते थे। वे किसी भी तरह पैसे जुटाकर अपने शरणदाता को देते थे। इस धंधे को यूनुस अंसारी और उसके पिता ने शुरु किया। बताते हैं कि उसके यहां पनाह लेने वाले सिकंदर उर्फ अताउर्रहमान, मुन्ना बजरंगी जैसों ने तो सुरक्षित ठहरने के बदले में लाखों लाखों रुपये अदा किये। छोटे लोगों के यहां पनाह लेने वाले छुटभैये अपराधी तो अब तक किसी तरह अपना खर्चा जुटाते थे। अब दागी लोगों की सुरक्षा के बदले पगार पाने से उनकी भी दुकान चल निकली है।
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